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प्राचीन उपनिपदों को दार्शनिक चर्चा
मान्यतामों का आदिम रूप उनके उत्तरकालीन रूप से कितना भिन्न रहा होगा इसका एक अच्छा दृष्टान्त 'पंचाग्निविद्या' नाम से प्रख्यात वह चर्चा है जो प्रायः एक से शब्दों में बृहदारण्यक तथा छांदोग्य दोनों में आई है (बृह. ६. २., ठान्दो. ५, ३-१०) और इन मान्यताओं के इससे भी अधिक आदिम रूप का दृष्टान्त है कौषीतको के प्रारम्भ में आई । एतद्विषयक चर्चा इन तीनों ही स्थलों पर मोक्ष की कल्पना 'ब्रह्मलोक' में जाकर सदा के लिए रहने की कल्पना है और ब्रह्मलोक के सुखभोग आदि का कौषीतकी का वर्णन तो कदाचित स्थूलता की पराकाष्ठा है। इसी प्रकार इन तीनो हो स्थलो पर पुनर्जन्म की चर्चा के प्रसंग में कल्पना की गई है कि एक आत्मा चन्द्रलोक से वर्षाजल के रूपमें बरसना है। कौषीतकी में तो पुनर्जन्म प्राप्त करने वाली सभी आत्माओं के संबंध में एक वान कहो गई है लेकिन 'पंचाग्निविद्या' वाले स्थलों में एक अन्य-तथा निकृष्ट प्रकार के पुनर्जन्म का भी निर्देश है यद्यपि इस सम्बन्ध में विशेष कुछ नहीं कहा गया है
और स्पष्ट ही पुनर्जन्म के इस आतरिक्त प्रकारको कल्पना किन्हीं सैद्धान्तिक कटनाईयों से बचने के उद्देश्य से की गई है; (पुनर्जन्म-संबंधो उत्तरकालीन मान्यनामा को ध्यान में रखने पर यह अनुमान करना कठिन नहीं कि ये सैद्धान्तिक कठिनाइयां कौनसी रही होगो) । इन तीन मारके के स्थलो से अतिरिक्त स्थला पर भी प्राचीन उपनिषदों में पुनर्जन्म तथा मोक्ष के प्रश्न को छुआ गया है और उन सभी का अपने स्थान पर विशेष अध्ययन किया जाना चाहिए ।
अब दो शब्द उन चर्चाओ के सम्बन्ध में कह दिए जाएँ जहां शरीरस्तरीय घटनाओं को विश्वस्तरीय घटनाओं के समानान्तर रखने का प्रयत्न हुआ है । प्राचीन उपनिषदों में पद-पद पर उभर कर आने वाला एक स्वर है किन्हीं शरीरस्तरीय घटनाओं का वर्णन करके उन्हीं के समानान्तर किन्हीं विश्वस्तरीय घटनाओं का वर्णन करना तथा इन में से पहले वर्णन को 'इति अध्यात्मम्' और दूसरे को 'इति अधिदैवतम्' शब्दों द्वारा सूचित करना । ऐतरेय के प्रारंभ मे आत्मा के द्वारा लोकसृष्टि किये जाने का वर्णन है और इस प्रसंग में कहा गया है कि आत्मा ने पहले एक पुरुष को जन्म दिया, फिर उस पुरुप का मुख खोला तब मुख से वाक्, वाक्से अग्नि की उत्पत्ति हुई, उसको नासिका खोली तब नासिक से प्राण, प्राण से वायु की उत्पत्ति हुई, उसकी अक्षि खोलो तर अशि से चक्षु, चक्षु से आदित्य की उत्पत्ति हुई, आदि आदि । इस वर्णन के ब्योरे विशेष महत्त्व के नहीं और यह