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________________ कृष्णकुमार दीक्षित (५) छान्दोग्य में उद्दालक के मुख से कराई गई चर्चाएं । (६) बृहदारण्यक में याज्ञवल्क्य के मुख से कराई गई चर्चाएं । ब्राह्मण दर्शन की उत्तरकालीन मान्यताओं को ध्यान में रखने पर समझ में आना कठिन पड़ता है कि प्राचीन उपनिषदों में ऐसी चर्चाएं बार बार क्यों आती हैं जिनमें शरीर-शक्तियों के बीच प्राण की श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है । वस्तुतः ये चर्चाए उस युग की स्मारक है जब शरीर-शक्तियों के रूप में चक्षु, श्रवण, मन, वाणी तथा प्राण की ही परिगणना की गई थी तथा दार्शनिक चिन्तन इस प्रश्न के समाधान में व्यस्त था कि इनमें से सर्वश्रेष्ठ शरीर-शक्ति कौनसी है । काल-क्रम से एक ओर • शरीर-शक्तियो की संख्या में इजाफा हुआ तथा होते होते वे सब शक्तियां-साथ ही कुछ अन्य भी-चिन्तन की परिधि में आ गई जिन्हें उत्तरकाल में पांच ज्ञानेन्द्रिय तथा पांच कर्मेन्द्रिय कहा गया और दूसरी ओर शरीर-शक्तियों के ऊपर शासक शक्ति के रूप में आत्मा की कल्पना कर डाली गई । प्राण की श्रेष्ठता सम्बन्धी चर्चाओं से आत्मा की श्रेष्ठता सम्बन्धी चर्चाओं की दिशा में संक्रमण का एक अच्छा दृष्टान्त कौषीतकी का इन्द्र-प्रतर्दन-संवाद प्रस्तुत करता है जहां हमें एक ओर उन ऊहापोहों के दर्शन होते हैं जिन्हें प्रारंभ काल के प्राण-श्रेष्ठतावादी चिन्तकगण-पल्लवित किया करते तथा दूसरी ओर उनके जिन्हें उत्तरकाल के आत्म-श्रेष्ठतावादी चिन्तकगण और जहां बार-बार 'प्राण' तथा 'आत्मा' (वस्तुतः 'प्रज्ञात्मा') शब्दों का उल्लेख एक ही सांप्स में ऐसे किया गया है जैसे मानों ये दोनों परस्पर पर्यायवाची शब्द हो । लगता ऐसा है कि चक्षु आदि पांच शरीर-शक्तियों से अतिरिक्त आत्मा की कल्पना करने की आवश्यकता पुनर्जन्म तथा मोक्ष सम्बन्धी मान्यताओं को स्वीकार करने के फलस्वरूप अनुभव में आई है क्योंकि प्रारंभ में इतना ही माना जाता रहा होगा कि ज्योंही प्राण एक शरीर को छोड़ता है शेष शक्तियां भी उस शरीर को छोड़ देती हैं, लेकिन जब विश्वास किया जाने लगा कि एक व्यक्ति मृत्यु के समय एक शरीर छोड़कर दूसरा शरीर धारण करता है तब आत्मा जैसे एक नये तत्त्व की कल्पना की गई होगी जो इस नये विश्वास को सुसंगत बना सके । इसी लिए इस अनुमान के लिए अवकाश उपस्थित होता है कि एक ओर पुनजेन्म तथा मोक्ष की मान्यताएं और दूसरी ओर मात्मा को मान्यता एक ही साथ उपनिषदकारों की चिन्तन-परिधि में समाविष्ट हुई हैं। पुनर्जन्म तथा मोक्ष. को
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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