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कृष्णकुमार दोक्षित समाज के कर्णधारों ने इस समूची सामग्री राशि के संकलन का निर्णय किया तब इस राशि के उस-उस भाग का संकलन समाज के उस-उस भाग के हाथों हआ। इस संबंध में यह स्पष्ट है कि जो सामग्नी जितनी ही प्राचीन रही होगी वह उतने ही अधिक समाज भाग में प्रचलित रही होगी जिसका अर्थ यह हुआ कि मूल वेद-मंत्र तो अवश्य ही समूचे वैदिक समाज की विरासत रहे होंगे; (ये मूल वेद-मंत्र कौन से हैं यह निश्चय करना सरल नहीं लेकिन प्रस्तुत प्रसंग में हमें इस प्रश्न को उठाना भी नहीं) । इसका अर्थ यह हुआ कि विभिन्न उपनिषद्, क्योंकि वे वैदिक साहित्य का अर्वाचीनतम भाग हैं, जिस सामग्री को अपने में संजोए हुए हैं वह प्रायः निश्चय वैदिक समाज के विभिन्न भागों में प्रचलित रही सामग्री है; जो सामग्री एकाधिक उपनिषदोंमें संकलित है वह अपेक्षाकृत प्राचीन हो यह भी पर्याप्त संभव है (किसी सामग्री का एक ही उपनिषद् में एकाधिक बार संकलित हो जाना-उदाहरण के लिए बृहदारण्यकोपनिषद् में प्रख्यात याज्ञवल्क्य-मैत्रेयी संवाद का दो बार आनालापरवाही का ही सूचक हो सकता है)। अब प्रश्न है कि वैदिक साहित्य की सामग्री-राशि के किसी भाग को एक उपनिषद् में समाविष्ट करने की कसौटी क्या रही होगी और यह कि एक उपनिषद् में समाविष्ट सामग्री के क्रम-व्यवस्थापन की कसौटी क्या रही होगी । लगता यह है कि जड़-चेतन जगत् के मौलिक स्वरूप सम्बन्धी उहापोहों को–अर्थात् दार्शनिक ऊहापोहों को-उपनिषदों का रूप देने की चेष्टा की गई है, और इसका अर्थ यह हुआ कि यदि किसी उपनिषद् में समाविष्ट सामग्री का सम्बन्ध किन्हीं दार्शनिक प्रश्नों से नहीं तो वह भ्रांतिवश वहां
आ गई मानी जानी चाहिए; (कुछ सामग्री के सम्बन्ध में कदाचित् यह भी कहना पड़ेगा कि वह उपनिषदों में आने योग्य होते हुए भी भ्रांतिवश कहीं अन्यत्रउदाहरण के लिए, किसी ब्राह्मण में-चली गई है)। इस पृष्ठभूमि में यह बात ध्यान आकृष्ट करती है कि कुछ उपनिषद् अपनी शैली तथा अपनी विषय-वस्तु दोनों की दृष्टि से विशेष प्राचीन लगते हैं और प्राचीन उपनिषदों से हमारा आशय इन्हीं ग्रन्थों से होना चाहिए । इनके नाम हैं : बृहदारण्यक, छांदोग्य, तैत्तरीय, ऐतरेय, तथा कौषीतकी । कदाचित् ये तथा ये ही वे कृतियां हैं जिन्हें वैदिक साहित्य राशिका संकलन करते समय उपनिषद् वर्ग में ररवा गया था जिसका अर्थ यह हुआ कि 'उपनिषद्' नामधारी शेप कृतियां न्यूनाधिक उत्तरकाल में रची गई कृतियां है प्राचीन सामग्री का संकलन रूप कृतियां नहीं । (अपनी आगामी चर्चा में हम