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गांधर्वमां 'रक्ति'
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'मंडन मंत्री' शांगदेवमी जेम कहे छे के जे नाद श्रोतृजनना चित्तनुं रंजन करे ते स्वर, यथा: रञ्जयन्ति स्वतः श्रोतृजनचित्तमिति स्वराः । सङ्गीतमण्डन, श्रुतिप्रकरण ॥ कुंभकर्ण पण शोभादीप्त, रंजनात्मक 'रव' ते ज 'स्वर' तेवी व्याख्या आपे के; (रोषा परथी पण ते शब्दनुं निरुक्क थई शके छे, तेवुं विशेषमां कहे छे.) राजेर्वा रजतैर्वापि स्वरतेर्वा स्वरैरथ ।
तेर्वा स्वरशब्दोऽयं निरुक्तः कृष्णभूभुजा ॥
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- सङ्गीतराज, गीतरतकोश, स्वरोल्लास १२८
जेने आजे आपणे 'कंठ्य संगीत' कहीये छीए तेने प्राचीनो 'गीत' कहेता.
१५ सप्तकना स्वरोनी खूब जाळीती वात विशे अत्रे वधारे अवतरणो टांकवा अनावश्यक छे. कुंभकर्णे 'श्रुति'मांथी स्वरो- सप्तस्वरो-उद्भवे छे ते नास भवलोकननुं मूल्य होई, भहीं ते सन्दर्भना उपकारार्थं उल्लेख करवो योग्य मान्यो छे.
सामान्यतः पुरुषोनो कंठ B flat थी लइ D sharp सुधीर्मा होय से मने स्त्रीमना D sharp थी लई G sharp सुधीनो.
१६. 'विश्वावसु' ने वृहद्देशीकार टांके छे. नान्यदेवनी चर्चा तेमना 'भारतभाष्य' अपरनाम 'सरस्वतीहृदालंकार" ग्रन्थमां मळे छे. नान्यदेवनो काळ ११मा शतकना पूर्वार्धनो होमानो संभव छे. आनी चर्चा आगळ जगावी गयो तेम हुं मारा पूर्वकथित लेखमां करी रह्यो छु. (अभिनवगुप्त अन्तरालनी एटले के 'स्वरान्तर'नी श्रुतिभो बेसूरी माने छे (वैस्वर्यस्वरस्वेन विहितेषु अन्तरालश्रुतिविशेषेषु ध्वनि (वि) संवादनाद् भवतीति सर्वताभ्युश्रम् )
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१७. आ श्रुतिओनां नाम इत्यादिनी विगतो भहीं अप्रस्तुत होई छोटी दोघी छे.
१८ अतितारातिमंद्रत्वाद् वैस्वर्य चोपदर्शितम् ।
- भारतभाष्य, श्रुत्यध्याय, ३.४५
१९. पश्चिमी वाद्योम 'पियानो' के 'भोर्गन' पांच सप्तकधी विशेष सप्तक घरानतो होवा सांभळ छे.
२०. उपर अतां भने नीचे उतरतां लागतां धक्काने कारणे श्रुतिमो अहीं 'स्थितिस्थापक', या रागना रंगभावानुकूल बनी जती हशे ?
* में आ श्लोक अहीं रामकृष्ण कवि ( " भरत कोष", पृ० ५१३) परथी उद्धृत कर्यो छे. + "संगीतमकरन्द" प्रायः ११ मीथी १३मी शताब्दी सुधीमां रचायेला प्रन्थोना आधारे
१७मी सदीमां संकलित थयो अणाय छे.
२१. आ अंगे जुओ "गीतालंकार" पृ. ८ भा दश गुणोनी विशेष चर्चा हु एक लेखमां करनार होई, तेम तेम ऊंडा उतरवु उपयुक्त न होई, विशेष कहीश नहीं.
+ "नारदीय शिक्षा "नो रचनाकाळ विवादास्पद छे. विशेष चर्चा मारा "भारतनुं प्राचीन गांधर्व साहित्यमा करी रह्यो छु.