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गांधर्वमा रक्ति
"संगीतमकरन्द" पण (मोटेभागे तो संगीत रत्नाकरने अनुसरीने) एवं ज कहे छः सुरक्तं वल्लकीवंशकण्ठोक्तान्येकतागुणम् ।
--सङ्गीतमकरन्द १. ४. ४४ आजे वंशीनी संगत साथे तो कोई गातुं नथी, पण सारंगी, के जेनी प्राचीन काळे वीणाना प्रकारोमां गणत्री थती, तेनी संगतमा गान थाय छे भने सारंगीना सुरमा मळी जता कंठो उत्तर भारतीय संगीतमा केटलाक किस्साओमां जोवा मळे छे. म. खां साहेब अब्दुल करीमखां, बनारसनी प्रसिद्ध गायिका बडी मोतीबाई, रसूलनबाई, बेगम अख्तर, पन्ना बोझ, इत्यादि नामो दृष्टान्त तरीके गणावी शकाय, श्रीमती होराबाई बडोदेकरना तारसप्तकना षड्ज-गान्धार, मत्रोली घरानानी गायिकाओ (खास करीने केसरबाई केसकर अने स्व, सरदारबाई करदगेकर)नां धैवतादि स्वरो उर्जस्वी अने रक्तिपूर्ण कही शकाय.
'रक्ति'ने जेम एक बाजुए नाद साथे संबंध छे तेम बोजी बाजुए 'काकु साथे संबंध छ; काकु तत्त्वना एक अंश तरीके ते हमेशा उपस्थित होय छे. 'पार्श्वदेव' (तेरमा शतकनो पूर्वार्ध) 'काकु'नुं स्वरूप बांधता कहे छे के काकुमा भाषानी भाव-भंगिमा, छाया, अने 'रक्ति'र्नु सामर्थ्य होय छेः । काकुश्च भावनाभाषाछायारक्तिसमर्थवान् ।
-सङ्गीतसमयसार २.९६ स्व. पंडित ओमकारनाथ ठाकुरना 'मालकोस' सरखा ख्यालनो उपाह जेम एक बाजुथी रक्तिथी दीप्त रहेतो तेम बीजी बाजुथी काकुना व्यापथी चेतोहर बनी जतो; एज प्रमाणे किराना घरानाना म० खां साहेब अब्दुल करिमखां तेम ज ग्वालियर घरानाना भूगंधर्व गणाता म० उस्ताद रहिमतखांना गानमा रक्तिपूर्ण काकुनो अजब प्रयोग जोवा मळतो. स्व० दत्तात्रय विष्णु पलुस्करना बेमणे यमन, केदार अने मालकोस सरखा दिव्य, 'मार्गी रागोना ख्याल भने झोटी रागा भजनो साभळ्यां छे तेओने स्मरण हशे के तेमनो रक्तिमंडित अवाज वाताचरणमां केवो छवाई जई दिव्यतानो आविर्भाव करी देतो. 'पार्श्वदेव,' 'शार्गदेव, 'कुंभकर्ण' आदि संगीत-दार्शनिकोए काकुना छएक जेटला प्रकारोनी वात करी छे, त्यां 'क्षेत्रकाकु' विषे स्पष्टीकरण करतां पार्श्वदेवे तेमा 'रक्ति' स्वभावथी उपस्थित रहेती होवानो उल्लेख कर्यो छे, यथा :