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________________ र. म. शाह २४. हेमतिलकसरि संधि ४० गाथानी आ संधि श्री.नाहटाजीना संग्रहमां होवान डॉ. देवेन्द्रकुमार नोधे छे.' आदि-पाय पणवि सिरि-वीर-जिणंदह, अनु सिरि-गोयम-सामि-शुणिदह । हेमतिलयसरिहि गुण लेसो, संधि-बंध हउं किमपि भणेसो ॥१॥ अंत-जसु महिम करंतइ, जणि गुणवंतइ, जिण-सासण उनोइ (?) वउ । गुरु णिय गच्छह, अणु मुणि-सच्छह, संघ-समण वच्छीय दियउ॥४०॥ २५. मृगापुत्र संधि ६. कडवकनी 'मृगापुत्र मह घ चरित' एवं बीजु नाम धरावती आ संधिनी नोध मात्र जिनरत्नकोप मां ज छे. आदि-अंत मळतां नथी. कदाच आ चरितकाव्य होय एम एजें बीजुं नाम अने कडवक-प्रमाण जोतां जणाय छे. आ ज नामनो एक जुनी गुजरातीनी रचना मळे छे-जेना कर्ता जिनसमुद्रसूरि छे. पण एनी गाथा-संख्या ४४ छे. तेथी बन्ने भिन्न छ ए स्पष्ट छे. आ सिवाय श्री. नाहटाजीए पूर्वनिर्दिष्ट लेखमां पाटणना भंडारोमा प्राप्त थता वरदत्तरचित 'वयरसामिचरिउ' (वज्रस्वामि-चरित) ने पण संधि-काव्यमा गणावेल छे, परंतु तेमां एक करतां वधु संधिओ छे, कविए पोते पण एने चरिउचरित नाम आपेल छे अने तेनुं प्रमाण ३०० गाथा जेटलु छे. ए बधुं लक्ष्यमां लेतां एने संधि-काव्य करतां चरित-काव्यना विभागमा मूकवु उचित गणाशे. ___ आ उपरांत डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्रीए बे बीजां संधि काव्यो नोंध्यां छेएक हरिचंद अग्रवालनु अणथमिय संधि अने बीजं पाहल कवितुं मणुय संधि. जयपुर अने दिल्हीना भंडारोमा आ बेनी प्रतो छे. वधु विगतना अभावे ए बन्ने संधि काव्यो ज छे के नहीं ते जाणी शकातुं नथी. १. अप. भा. सा. शोध प्रवृत्तियां पृ. २०० २. जिनरत्नकोष पृ. ३१३ ३. जेसलमेरुदुर्गस्थ हस्तप्रतिसंग्रहगतानां संस्कृत-प्राकृतभाषानिबद्धानां ग्रन्धानां नूतना सूची-मुनिराज श्री पुण्यविजयजी, १९७२ पृ. २११. ४. अप. भा. सा. शोध प्रवृत्तिया पृ २१६.
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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