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________________ अपभ्रंश संधि-काव्यो आदि- अत्थि पसिद्ध सुद्ध-सिद्धंते, कहिउ उत्तरज्झयणि महंते । केशी-गोयम-धम्म-विचारू, संधि-बंधि सु कहिज्जइ सारू ॥१॥ अंत-इम करवि विचारू, संजम सारू, पालेविणु जे मुक्खि गय । ते गोयम केसी, चित्ति निवेसि, झायहु भवियाणंदमय ॥७०॥ २१. उपदेश संधि-हेमसार आ संधि परिषद् पत्रिका' वर्ष-४ अंक-३ मा प्रकाशित थई गई छे.' श्री. मो. द. देसाईए आने पंदरमा शतकना उत्तरार्धनी रचना गणी छे.' आदि-ससहरसम वयणीय, दीहर नयणीय, हंसगमणि सरसद सुमरेवि । जिण-धम्म-पप्तिद्धिय, बुद्धि समिद्धिय, भणिसु संधि उवएस वर ॥१॥ अंत--उवएसह संधि, निरमल-बंधि, हेमसारु इम रिसि कहई। जो पढइ पढावइ, सुह मणि भावइ, वसुह सिद्धि विद्धि लहइ ॥१९॥ २२. अनाथी महर्षि संधि-अज्ञातकर्तृक जिनप्रभसूरिनी आ ज नामनी संधिथी भिन्न छे. जो के विषय एक ज छे. ला. द. विद्यामंदिरनी वि. सं. १४८६ मा लखायेली प्रतिमां आ संधि मळे छे. आदि-पय पणमवि सिद्धह, नाण-समिद्धह, सासय-ठाण-पयट्ठियह । साहू गुणवंतह, चरण-पवित्तह, जीव अणाह [सणाह] किय ॥१॥ अंत-रिसि-चरिउ सुणेविणु, वरणु मुणेविणु, होहु भविय समुत्ति थिर। चंदुज्जल मणु करि, समु ससि ठायरि, खमहु कम्म संचिय जि चिर ॥७४॥ २३. तप संधि-विशालराजसूरि-शिष्य आनी प्रति पाटणमां-कागळनी-छे, जेनी लेखन संवत् १५०५ छे. आमां ५२ गाथाओ छे. पंदरमा शतकना अंतनी रचना छे.' अंत--सिरि-सोमसुंदर, गुरु-पुरंदर, पाय-पंकय-हंसओ । सिरि-विसालराया, सरि-राया, चंद-गच्छ-वंसओ ॥ पय-नमिय-सीसई, तासु सीसई, एस संधी विनिम्मिआ। सिव-सुक्ख-कारण, दुह-निवारण, तव-उवएसिइ वम्मिा ॥ १. अ. भा. सा शोध-प्रवृत्तियां पृ. २०८ २. जै. गू. कविओ भा. १ पृ. ८३.
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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