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र. म. शाह
त्रणथी मांडी दश सुधोनी गाथाओना बनेला होय छे अने दरेक कडवकना अंते घत्ता जोवा मळे छे कडवकना छंद तरीके मोटाभागे पद्धडिया अने घत्ताना छंद तरीके छड्डुणिका जोवा मळे छे.
___ आ संधि काव्यनो विषय होय छे-धार्मिक के पौराणिक महापुरुषना जीवननो कोई उदात्त प्रसंग, आगमादिकमांनी कोई धर्मकथा के प्रासंगिक उपदेश वचनो.
___ आ पूर्वे संधि काव्यो विशे धणां वर्षो पहेला 'राजस्थानी' नामक सामयिक पत्रिकाना प्रथम वोल्यूममां श्री अगरचंद नाहटाजीए एक लेख लखेल. तेमां तेमणे तेर संधि काव्योनी नोंध आपेली. ए पछी समय जतां अपभ्रंश विषयक घणुं नवं साहित्य प्रकाशमां आव्युं छे अने ग्रंथभंडारोनी अनेक नवी सूचिओ पण प्रगट थती रही छे. ए बधा नवा उपलब्ध साधनोना आधारे में अहीं पचीसेक संधि काव्योनो ट्रॅक परिचय आप्यो छे. दरेक संधिना कर्त्ता, रचना-समय अने मळे त्यां आदिअन्त नोंध्या छे, तथा खास करीने अप्रगट संधि काव्यनी हस्तप्रतो कया कया स्थळे छे तेनी शकच तेटली माहिती आपी छे..
आमांनी मोटा भागनी कृतिओ गुजरातना भंडारोमाथी मळे छे भने श्वेताम्बर जैन मुनिओनी रचेली छे । हकीकत प्रथम नजरे ज ध्यान खेंचे छे.
आ संधि काव्योनो रचना समय विक्रमनी तेरमी शताब्दोथी पंदरमी सुधी विस्तरल छे. आ कृतिओनी भाषा विशे डॉ. भायाणोजी लखे छे
"तेरमी शताब्दोमा अने ते पछी रचायेली कृतिओना उत्तरकालीन अपभ्रंशमा तत्कालीन बोलीओनो वधतो जतो प्रभाव छतो थाय छे. आ बोलीओमां पण कचारनीये साहित्यरचना थवा लागो हतो-जोके प्रारंभमां आ साहित्य अपभ्रंश साहित्यप्रकारो ने साहित्यवलणोना विस्ताररूप हतुं. बोलचालनी भाषानो आ प्रभाव आछा रूपमां तो ठेठ हेमचंद्रीय अपभ्रंश उदाहरणोमां पण छे. उलटपक्षे साहित्यमा अपभ्रंश परंपरा ठेठ पंदरमी शताब्दी सुधी लंबाय छे अने क्वचित् पछी पण चालु रहेली जोवा मळे छे."
उपलब्ध संधि काव्योमा सिद्धराज जयसिंहना समकालीन वादि देवसूरिना शिष्य आचार्य रत्नप्रभसूरिए रचेला धर्मदासगणिनो उपदेशमाला परनी विशेषवृत्ति
१. शोध अने स्वाध्याय-डॉ. हरिवल्लभ भायाणी, १९६५ पृ. ३२-३३ २. एअन.