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________________ अपभ्रंश संधि-काव्यो र म. शाह विक्रमनी तेरमीसी शरुआतमां अपभ्रंश साहित्यमा एक नवो काव्यप्रकार देखा दे छे - ते छे संधि-काव्य. अपभ्रंश महाकाव्य अने पौराणिक काव्यो एक करतां वधु संधिनां - केटलांक तो सो करतां य वधु संधिओमां रचायेलां जोवा मळे छे, अने ते बधा तेथी ज संधिबंध काव्यो कहेवाय छे. ज्यारे उपरि निर्दिष्ट संधि-काव्य केलांक कडबकोना समूहरूप मात्र एक ज संधिमा समातुं खंडकाव्य छे. "पद्यं प्रायः संस्कृतप्राकृताऽपभ्रंशग्राम्य भाषानिबद्धभिन्नान्त्यवृत्त सर्गाssश्वाससंध्यवस्कन्धकबंधं सत्संधिशब्दार्थवैचित्र्योपेतं महाकाव्यम् ||"" आचार्य हेमचंद्रना आ वचनथी जणाय छे के संस्कृत महाकाव्य सर्गेमां, प्राकृत महाकाव्य आश्वासोमां, अपभ्रंश महाकाव्य संधिओमा अने ग्राम्यभाषानुं महाकाव्य अवस्कंधोमां विभक्त थतुं. आ संधिनो पेटाविभाग ते कडवक. संधिबंध काव्योनी शरुआतमां आ कडव आठ पंक्तिओनुं बनतुं, अने एना आरंभे ध्रुव के ध्रुवपद तथा अंते घत्ता नियमितपणे आवतां. हेमचंद्राचार्यना 'छंदोऽनुशासन' ना छट्टा अध्यायनी शरुआतमां ज आनी व्याख्या करवामां आवेली छे— संध्यादौ कवकान्ते च ध्रुवं स्यादिति ध्रुवा ध्रुवकं धत्ता वा ॥ कडवकसमूहात्मकः सन्धिस्तस्यादौ । चतुर्भिः पद्धडिकाद्येश्छन्दोभिः कडवकम् । तस्यान्ते ध्रुवं निश्चितं स्यादिति ध्रुवा, ध्रुव, घत्ता चेति संज्ञान्तरम् ॥ संधि काव्यनुं बाह्यरूप आ संधिबंधकाव्यना एक संधि जेवुं ज होय छे. मळतां संधि काव्यो एक ज संधिमा २० थी मांडी १०० सुधीनी गाथाओना बनेला छे. एमां स्थूलभद्र संधि जेवुं २१ गाथानुं लघु काव्य छे, तो बीजी बाजु चंदनबालापारणक संधि जेवु एकसो एक गाथानुं काव्य पण छे. आमांना कडवको www. १. काव्यानुशासन - हेमचन्द्राचार्य अध्याय -८, सूत्र - ६ २. छंदोऽनुशासन ६, १ " " دو ( सटीक )
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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