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१५६, 1 २. श्री
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सोपाहरण रा
भामदल हणुयतु नहेण
महिलाउरि पदविय सणेण ॥
आणिय साविसला
फसद लक्खण- उरु
नीसरिया सह सत्ती वच्छयलार्ण तणु ॥ १५८
ता उट्ठि [14 A] उ अगर मोडनउ राहवु वन्नर विहसावत ॥
दस सिर साहिय विज्जा जाणेविणु लक्खणु
थिउ विक्कम-वल- सहिउ सगामह तक्वणु ॥ १५९ दससिरु सतिहरह नीखत्तउ
थिउ तक्खणि अत्थाणि तुरतउ ||
जाणिवि जीवह वइरी पुणु समरस्यो ताँ
सुमरिवि धाहा मुय अवलोयइ निय भुय ॥ १६०
ता सन्नद्धा वन्नर सव्व परहुता के -इरविण - जुज्झे ॥
तावहँ अमिलय-माणा राहवु अनु लक्खणु गरुडद्धय-सीहिं
जुज्झइ लच्छीहरि सहु राँवणु वहुविह-पहरणर्हि वीहावणु ॥
छिन्न- कवय- तोणीरो किउ दससिरु लक्खणि बहुरूविणि- विज्जाए
दी सइ वर - सदणि ॥ १६२
ज ज छिन्नइ लक्खणु अगू तं तं वद्ध दु-गुणउँ चगू ॥ वियलि [य]-पहरण-हत्थो समरइ सहसारु तरुणारुण - रविर्विवो रवि-य-सुसारु ॥ १६३
तावह मेल्लद विणु चक्को जाइवि लक्खण-हत्थि विलग्गो ॥
आरूढा तक्खणु ॥ १६१
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५ सहिओ ६ तखणु १६० १ नीखतओ समरथी ६ यभू १६११ संनधा वनर २ तखणु १६२. ३ छिन ४ लखणि १६३१
१५८. ४ लखण ५ निसरेया १५९१ मोडतओ २ वनर, बतओ ४ लखणु २ तखणि अथाणि तुरंतओ ४ वाहा ५ परहुता केय ४ लखणु. ५ गरुडवय सोहिहि, जिन्निइ २ चगु १६४ १ मेल लक्षण
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