________________
सागरचंद राउ
ऊपन्न हल भुमलो रावह ग्वणेणं नावह वन्नर मुहटा हरिसिय चित्तेण ॥१६४
उपन्ना हलहर-नारायण
जाणिवि मसासण हुय दुम्मण ॥ [14B] पभणद लम्ग्वण नाव 'राँवण कि चिंतह लाम मिर अनयागे तर ण तलि फुत्तह' (१) ॥१६५
'फिरे दयरा गचु करेसी
न पाहाणह ग्वद वहे सी ॥ लक्षण लेमि सिर ते कारट फि वहुणा सहुँ गहव हणुाहिं मुग्गीव अ(१)करुणा ॥१६६
त मेला लाग्वणु सहसारु
ति छिन्नइ राँवण-सिर-सारु ॥ अजणगिर-मच्छाओ पटिभी धरणीयलि गउ पर लोय-पहेण फिट्टिय लक्खण-सलि ॥१६७
देक्सिवि पडिउ विहीसणि राँवणु
निय-छुरिया जा पहइ निय-नणु ॥ ता धरियउ रामेण लच्छीहर-जुत्तहि सुह-वयणहि उवसती तक्खणि निय-चित्तहि ॥१६८
रोयहि मदोयरि पमुहीमो
भाय विहीसणु अन्नु जणीओ ।। 'हा हा रावण पुत्ता किं मुक्क अणाहा लेक स तोरण रज्जु अतेउर-नाहा ।।१६९
पत्थतरि मारिउ दहश्यणो
नच्चहि वानर पूरिय-यणो ।। वहु-भड जण रोलेण पत्ता लका-पुरि कोट-त्थिय-लोएण दीसहि हरि हलहर ॥१७०
'एहु नारायणु चक्क-विहत्थउ
वीजउ हलाहरु हल-मुसल-[ह]थ[15A]उ ॥ १६४.३ पनउ ५ वनर १६५१ उपना १६७१ मेलइ लखणु २ त छिनइ. , गमा ६.मिटिय १६८३ परियो जुत्तहि ६ तसणि १६९२ भनु १७०६, दीहि (1) १७१ १ विहथओ २ पीजओ धमो