SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्या मर ह सीयाहरण-रासु वे - वि रणगणि लद्ध-पयावा जुझह अवरोप्प सम-भावा ॥ मेला सर- निवहो राहवु रोस - वसेण कीजs दससिरु सत्ता वाट तिं वि रहो ॥ १४५ तह - वि न सकिउ मारिउ रामणु विज्जा - परमे सरु अइ- [13 A] दारुणु ॥ पुणु लकह पड़सेवी साहह बहुरुविण तिहरे झाणत्थ नीखोभु जहा मुणि ॥१४६ अगय -भामंडल हणुया हि जपहि ँ मिलिय कुमर - समुदाय ॥ 'सतिहरे पदसेवी रामण खोभिज्ज वहु उवसग्ग करेवी जिं विज्ज न सिज्झइ ॥ १४७ एव भणेवि पर्वगम चवला वेपत्ता कह जमला ॥ पइसहि नयरिहि मज्झे जणु नासतु भणेइ तक्खण तूरता । 'वन्नर संपता ' ॥ १४८ ते सतिहरु नियत न पेच्छहि तक्खाणि नयरि को वि नरु पुच्छहि ॥ जिण पडिमहँ भरिय तिं दसिज्जइ ताण फलिमयाविमलाए ss अतरियउँ ॥ १४९ वेइ न चियहि ते रहसहि वलिया तक्खणि तो आभिडिउ पडिया || काहँ वि मग्गा दंता सिर-नास - कवोल auga - कोपर अन्ने महि लोलइँ || १५० का तक्खणि उद्विवि भय सता कर फरि सहि सतीहरि पत्ता ॥ १४५ २ अवरोपरु ४ मेलए ६ पारओ १४७ १४९२ तत्रणि ६ अतरेय १५० १ वळेया २ ४. वेखइ ५ अखभाल, २ मिळेय तखणि, पडेया २३ १४८ ६ धनर १५१ १ संभत्ता,
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy