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________________ २२ मेल्लर सर जालाओ नाव विहीम भाया रावणु भइ-वलियउ अहिमुहु तह चलियउ ॥ १३८ वि पण दहवयशृ "किहु आसन्नमरण || आमा दिदि-पराओ अनयारि विहीसण नाई जुन मार भाया समरगणि' ॥ १३९ ताव विहीणि 'म मरि भाइ इदड-पमुहाण महि जीवित देव विरम सकिरेही मन्नह महु चयण' || १४० जावेव विवि वयणहि ताव विहीणु छाउ वाणहि ॥ अलि-उल कज्जल-वन्नो उत्तम महानरु ता देक्खह निय पुरओ सुहडउ लच्छीहरु ॥ १४१ पण रावणु ' ओसर वाला सहिवि न सकिसिमहु सर जाला ॥ जाहि वणे फल भुजे को रणि अहिगारो लक्खण अमलिय-माणो माह ससारो' ॥१४२ च वयणु त् अ-सरणु ॥ [ 12 B] पण लक्खणु 'गजिसि काइ जाइलेविणु दम वि सिराइ ॥ मु[िय] सुमरेवि रावण सुर-सत्ती सा दिड वच्छयलो पडियउ सोमित्ती ॥ १४३ पडियउ देक्खिवि महियलि लक्खणु रामु समुट्ठि समर - विक्खणु ॥ सुणि सेणिय रणु अइसो न-वि सुयउ न दिउ रहु-रावण-रायाण वित्तु अणिउ ॥ १४४ सागरचंद र १३८ ३. मेल, ४ वलियओ ६ चलियओ १३९ १ देखे २ आसनउ मरणु १४० २४ इद १४११ मिखवयभो पाहि ३ बनो ५ देखइ ६ सुहडमो १४२. ५ सुयमो, दिओ ६ भडिभो लवण १४३ ३ मुक्के १४४ ४
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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