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सीयाहरण-रातु
आव हि निव संगामि न भती
कि-वि होइ न-वि जाणहुँ अती ॥ रक्खि कुल-क्खउ देव अप्पह वइदेही अखलिउ भुजह रज्जु महु वयणु करेही' ॥१०६
तावह तसु सो आवइ घायहि
पहरतउ धरियइ कुंभाइहि ॥ 'अवसहि छीजइ जीहा वोलंतह एव पाव विहीसण तुझु वहरिय-सिरु जेव' ॥१०७
पुणरवि सुह-वयणहि वुज्झावइ
हिउ जि वयणु तसु विसु जिह भावइ ॥ मणइ विहीसणु 'देव परिहरि पर-नारी इह-लोए अयसो होइ] पर-भवि दुह-कारी ॥१०८
सुणिवि दसाणणु असुहउँ जपइ
अमरिस वसहि निरारिउ कपइ ॥ 'रे रे पा[9B]वह पासा पमाइ दुवोल्लिउ न सुणउँ वयणु वि तुझु गच्छहि मोक्कल्लिउ' ॥१०९
देक्खेवि होणतणु निय पहुणो
कियउ विहीसणि राहवु सुयणो ॥ कोवानल-पज्जलिओ ता पभणइ दससिरु 'ताडावहि रण-मेरी लेवउँ वइरिय-सिरु' ॥११०
तावहें ताडिय भेरी तुरती
गुरु-सदहि दस-दिसि पूरती ॥ मेरिहि सद्द सुणेवी केइ-वि भड भीया अन्नहँ रण-उक्करसो केइ-वि गय जीया ॥१११
हरिसहि तहि सन्नझिवि रक्खस
आवहि” गयण-तलेण ते स-हरिस ॥ सुय-सारण-मारीची अनु हत्थ-पहत्था
वज्जमुह-वग्जक्खा वेलधर-पत्था ।।११२ १०६ ३ 'खउ १०७ २ पहरतभो १०८ १ गरी १०९ ६ भोकल्लिठ ११०.१ देखेषि २ कियो १११ २ सदहि ३ सद ११२ १ हथ ५ बज्जखो, ६ पक्षा