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सागरचंदराड
[३ राम-रावण-संगामु]
सिल ऊपाडिय लकवणि जावहँ
जाया वन्नर रण-मुह तावहँ ।। एत्थमरि स विलासा समरगण-केरी अफालहि सतुद्वा पवरगण मेरो ॥१००
मेरिहि सदु सुणेवि मिलती
नल नीलाइ-मड आवतो ॥ पवणजउ हणुमतो भामंडल राया जयसेणु वि सह-पुत्ता रवि-रिक्ख पराया ॥ १.१
अगय कुमय-अणन-परक्कम
जयवतय-जयवंत स-विक्कम ॥ हयगय-रह-जोहेहिं वहु-मड-कोडीहिं वद्धई गहव-सेन्नु जिव चदु कलाहिं ॥१०२
एव-विह बहु वन्नर-लक्खा
मिलिया राहव-ठाहिय सुपक्खा ॥ दिग्ध विमाणारूढा लच्छीहर-राहव सुग्गीवेण समणा नज्जति सुराहिव ॥१०३
जति नहेण[9A] स-सयणा वानर
अप्फालिय-वर-तूर महा-भर ।। हव-गय-रह मारूढा पहरण-सपुण्णा लकह वाहिरियाहिं जाइवि अवइण्णा ॥१०४
निसुणवि पर-वलु वारि पराइउ
ताव विहीसणि वुश्चइ भाइउ ॥ 'राहव लच्छीहराण सुग्गीव-समाणा
मिलिया वन्नर राया एक्केक्क-पहाणा ॥१०५ १००, पाडेय लखणि २ घनर ३ एथ' ५ अफा १०१ १ सदु मोह, मावनी ६ रिख १०२ २ जयवनय जवधा १०३१ वमरसखा. सवा १०४ १ मा ६ अबहना १०५ १ पारि ६ एकेक.