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गर
सीयाहरण-रासु
तो वि न मन्नए दढ-चारित्ता
तुह विरहे सामिय दुक्खत्ता । अच्छइ पइ समरती तव-सोसिय देही एह चूडामणि देवा पेसिय स-सणेही ॥९४
लंक स-तोरण पज्जालेविणु
हउँ आइउ रावणु कोवेविण ॥ को किर वीहइ तासू सामिय दहवयणह हट्ठ-चरित्त-अणज्जा- अइ-निग्धिण-कम्मह' ॥९५
इत्थतरि पभणइ पउमाहो
'के दूरे लकापुरी-नाहो' ॥ 'दाहिण-लवण-समुद्दे जोयण-सय सत्ता लधिवि रक्खस-दीवो लका सु वि भत्ता' ॥९६
राहवि वुच्चइ ता कवि-नाहो
"देक्खेवउ म. लंका-नाहो ॥ पभणइ अवसर जाणे निवु वानर-नाहो 'निसुणहु महु वयणाई सामिय पउमाहो ॥९७
अन्नु ज णेमित्तिएँ परिकहियउँ
त अम्हह एवढं समरियउँ ॥ कोडि-[8B]सिला सुर-सहिया जो उप्पाडेसइ तसु हत्थहि जज्जरिउ दहवयणु मरेसइ ॥९८
एउ चिंतिउ गउ कोडि-सिलाहिं
उप्पाडइ लक्खणु वाहाहि ॥ कहियउँ सीय-विहाणु तुहु सेणिय-राया एवँह सुणि सगामो दोह पि महाया(८) ।।९९
९४ १ मनए ३ अछइ ४ देवी ९५ ६ निर्षिण कमह ९६ ३ समुदे ५ रखास ९७२ देखेषमो ९८ १ अतुज पणेमि, कहेयउ २ समरे" ३ 'सु' के पश्चात् दण्ड ५ हय हि जजरिमो ९९ १, चिसिउ गमो २ लखणु पाहाहिं ३ कहेयर्ड
चुरए, पर ममा.