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________________ सागरचंद-राउ ता हणुयउ पभणइ वयणाइ 'किं रावण जपह कड्डयाइ ॥ सुणि दससिर महु वयणु ससहर कर-धवलउँ महलिउ कुल अ-कलकु रयणासव-केरउँ ॥८७ अवस न जायउ तुहुँ रयणासविं ज छविसि पर-नारि[य] तुहुँ न-वि ॥ अजि-वि किं न गय ते अप्पहि वइदेही ॥ लच्छीहर-रामेहिं सहुँ सधि करेही ॥८८ अच्छिसि भुजतउ निय-रज्जु तुह समरगणि मरणि न कज्जु ॥ महब न ढोयह सीया लका-परमेसर नित्तुल मरह असरणु पर-महिला-तक्कर ॥८९ जावेवविह वयणहि कोविउ ता हणुयउ रावणि माराविउ ॥ तोडिवि सकल-वधा रावण-धवलहरू चूरह वाहु-वलेण मणि-कंचण-पवरू ॥९० ___ वहसन्नर पुणु लक दहेवी गउ हणुयउ रावणु कोवेवी ॥ सियए दीना[8A]सीसा हणुयत नहेणं जाइवि पणमइ पाया राहवह खणेण ॥९१ स-हरिसु राहवु भणह तुरंता 'कहि रे हणुया सीयहे वत्ता ॥ 'सामिय तुहु विरहेण सीया सुसियंगी निय-जूहह परिभट्ठा नावइ सारगी ॥९२ नवि सा रमइ न वोल्लइ सामिय नीद पणष्ट्रिय तेजोहामिय ॥ मंदोयरि-पमुहाहि कोमल भासाहिं मन्नावीजइ वयणु रावणह प्रियाहिं ॥९३ ८८२ डिसि, तह. ६ महु ८९२ तुहु ९०२ हणुयो, ५ चुरएं, पण. १५२. इणुयभो, ५ पपमह ९२ ५ जूहह परमा ९३ १ पोला ५ मना
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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