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सागरचंद-राउ निसुणिवि उट्ठइ कोह-पलित्तउ
विज्जा छेउ करह तुरंतर ॥ स्यणजडी हिय-विग्जो सो किउ पय-चारी रामणु सीय हरेखो गउ लकह पारी ॥४६
तेण सीय उववणि मेल्लेविणु
मदायरि माइट्ठ सेविणु ॥ 'तुहुँ किरि विज्ज-गुणोहा मिउ वयण-वियक्खण तिह करि जिह एह भज्जा महु होइ स-लक्खण' ॥४७
मदोयरि तसु वयणु सुणेवी
पचा सीय पासि विहसेवी ॥ पुचि समासेवी वुच्चइ वइदेही सहि वहु-गुणु हित पत्थु महु वयणु सुणेही ।।४८
सहि लंकाहि विज-सणाहो
भरहवह वहु-खयरहँ नाहो ॥ जि लद्वउ रणे इदो दिगुपालहि सहि[5A]यउ नव गह हुय वसि जासु सुर-खयरहि नडियउ ॥४९
जसु वर-विग्जहँ तिन्नि सहस्सा
सिद्धा हुय जिह किंकर-दासा ॥ जो सोहगह खाणी लावन्नह कौटुउ रह-रमणिहि मण-हरणो सहि प. सइ दिट्ठउ ॥५०
जो तिङयण-आणंदणु सच्छउ
सो तुह् दससिरु आण-वडिच्छउ ॥ तम्हा सो तुहुँ इच्छे सुहु माणह कामो अम्हहैं सामिणि होही करि सफलउ जम्मो' ॥५१
सा तसु तणउँ वयणु निसणेप्पिणु
भणइ सीय मणि हासु करेप्पिणु ॥ मदोयरिं तुह धना जा निय-पइ-मत्ती
उजालिय सइ-लीहा पइ अन्जु तुरती ॥५२ ४६. पमितभो २ करेए तुरतो ४७१. सय, वियखण, ६ सलखण, ४९५ रगह५०.१, निमि. ५. ६ ममो,