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________________ सीय न भीय सइत्तण-गदि । भणइ 'राउँ कि एइ सच्चि ।। तुल चाउल विसु जल जलणु पचह एक दिब्बु महु दिजउ । तावि छेग्जि कसि निव्वडिउ कणगं जे व तुम्हह दरिसिजउ' ।। ६९ जणय-तणय-लक्खण-लवणकुस । भामडल-सुग्गीव महायस ॥ 'साहु साहु' जणवउ भणइ रामहु एह वोल्ल मावढी । स्वाइ खणवि त्रि-हत्थ सय त्रिण-कट्ठह भरेवि सा चही ॥ ७. जालिउ जलणु जलिउ स(स)घाई । मिलिय देव नर नरवइ घाई ॥ भणइ सीय सीलहु वलेण 'दहु दहु हुयवह आइय गन्नहु । जिण-सासणु राहउ मुर्याव मणु म. जब किउ उप्परि मन्नहुँ॥७१ लोएहि धाहाविउ एथतरि । सीय वइट्ट दिट्ठ वर सरवरे॥ कहइ सुराहिउ सुरवरहैं 'पेक्खहु सीलह ज माइप्पु । तेय रासि जल निडिउ *[36A] xxxxx न्नउँ क्षु ॥३२ रेहइ उवरि तासु तामरसहु । कणय-पीदु पिहु नाइ सुरेसहु॥ पेक्खवि राहउ चितवइ 'लोयह छदि कियउँ अकाजु । त मरिसे जाह]xxx पुत्ताह परिमिय मुजहि रज्जु ।।७३ 'वलिकिउ रज्जु मज्झु भंडारु । आई गम्मइ नरयह वारु ॥ भुत्त भोग सय-वार मइँ मणुयासुरेहि मर्णता काई । xxx वोसिरिउ पचहँ मुट्टिहि उक्खय बाल ||७५ सीयहि चरिय राहउ मोहिउ । छिडु लहेवि गउ उववणि सोहिउ ।। दिठु सिलायलि नाणधरू देस-विइसणु वंदर धन्नी । 'दीह xxxx महु भव-ससारहु इउ निब्बीनी' ||७५ ७० ५ तृहय तृण । गहु , सपरि, तीसचे पत्र वाम सेन्टिमिटर जितना प्रारम्भिक अश सणित होने से कुछ पजियों का पाठ मत त्रुटि है। ७४ २ गमइ ७५, १. अभी
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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