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लक्खवि सीयहि भाउ महति ।
दिन्न ताहि पावन तुरंती ॥ आइउ लक्खणु हलहरु वि सहुँ परियत्ति( णि ति-)भावरि देवी । मुणिवरु वंदवि जग-पव[रु] वैदिय xxx सीयाएवी ॥७६
वहू-कालु तव चरणु चोवी ।
छट्टमेहि देह सोसेवी ॥ वइदेही पचत्ति गय अभ्चुय-कप्पि इंदु उम्पन्नउ । पढइ सुणइ जा गुणइ नरु एहु रासु सो मx[4]न्नउ ॥७७
परमेट्ठिहि पचहँ पणमेवी ।
सुयदेविहि नवकार करेवी ॥ जाहे पसाइ भगवइहे कियउ रासु सीयहि सवदउ । । मज्झु खमेज्जउ भविय-जणु जो हीणक्खरु तहिं [36 B]x ||७८
जाँव मेरु जा चंद-दिवायर ।
जोव पुहइ चत्तारि वि सायर ॥ रासउ xxxi x होवि देउ वोहि दुक्ख-क्खय-कारउ । उसमहु तहु पजुन्नहो वि देउ घोहि जिण वीर मरा[डउ] ॥७९ ७६ . भावरि मन्त सीयादेविरासय संमत्त ।।
Printed by Swami Tribhuvandas Shastri, Shree Ramanand Press, Ahd. Published by: Dalsukh Malvanta, Director,
LD Insittute of Indology, Ahmedabad-9