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________________ हि हरिस-सोय सीयाहि उपचा। किर वल केसव सुणेवि काला म-सुकुमाला । । वाला ॥ हत्थाहस्थि घेप्पड़ से मि। को तहँ सक्कर गुण वदी लवणकुस । न-महायस ॥ समरारंभु महेतु पयाउ । वहुयहँ वइरिहि भग्गु मरद | माइउ नारउ । 'य-धारउ ॥ प रावचंद्हु सुय उपना। ' गमहि काल इहि हिय । कुमारेहि । गुण-धारेहि ॥ . वि(इ) भइ निरु सोगामीमांग वे समासिं दुक्खामरिय |२३ खउँ । क्ख उ ॥ 4A) रन्ति सरह मान-मर्यको र जंघ-नरनाहहु मिस वो 1 पजलिया-मण | .. रामि पहाय-काले एत्वंतरि । वे मयगल दिट्ठा मुमिणंतरि ॥ सेय-कसिण-चन्नुज्जल विन्नि-वि गयंगणि कलहुल्मा | दुरुदुल्लेषिणु मत्त गय पविसता स तोस डहछल्ला ।।५५ सुमिणं पेक्खवि जावें विउद्धउ । हकारिउ लक्खणु बहु-वुद्धउ ॥ सुमिण कहइ पहद-मुहु अइ रहसि गेमचिय गराउ । ताव अखि दाहिणि(य) फुरिय पभणइ वाह जलोल्लिय मेतड ५६ 'मज्जु वच्छ किर कोई वि होसह । पई समाणु को अन्नु मिसइ' ॥ लक्खणु पमणइ 'भाय सुणि मञ्झ वि मणु उल्छोहिमा जाव परोप्परु एउ भणहि ता वल पत्तउँ तूर-निनाई ॥५॥ पर-वल मुयवि (1) राउँ आसकिउ । 'अहो लच्छोहर एवहि कह किउ' । उट्ठिय रण कडुग्गहण सुहड समच्छर मह निक[B] AA वजजंघ-वल अभिडिय कलयस-सदई तूर-निधोसि ॥५८ कुमरेहि सहुँ भादतु महाहर । लच्छि-निझन भन्नेक्वहि राहउ ।। चोइय रहवर रहवरहि हक्क वोक्क मेल्लता का । बल केसव दिव्याउहेहिं जिणवि दो-वि पुणु मोहमि मुका धरणिधरहु मणि विम्हउ जाउ । 'चक्कु न पहरइ कवणु उवाउ' ॥ तावहि अक्सिउ नारएण 'मुणहु वर में अहम होहु । सीमहि नंदण राम-सुय वजनध-धरि बखिम -बि' ॥ नारय-वयणु सुणेवि विसिदउँ । अमिय-वयणु नं कन्नि पदउँ ॥ ते निवडता घरणियले लेवि करेहि विन्नि वि मासासिय मिलिय चियारि वि मोह गय चदण-रस-जळेण बासासिय ५५.१ सयंगमि ५६ ३ मई ५७ २ . ५. परोपर ६५... E पयाण-मैरि तुरंती सेन्न अवाणरि प्रतीक यभा. ४. विनिता ." रन्नि, अपूल, A
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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