SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दाणु जहिच्छउँ दिन्नु तहि हरिस-सोय सीयहि उप्पन्ना । अज्जु अगि नवि मंति किर वल-केसव सुणेवि कयउन्ना ।।४८ विन्नि वि केलिभाभ-सुकुमाला । ग्यणाहरण-विहूसिय वाला ॥ लवणकुस तह नाउँ क्रिउ हत्थाहत्थि घेप्पइ वे-वि । रूविं देव वि विम्हिया को तहँ सक्कइ गुण वन्नेवी ॥४९ जोवण-समउ पत्त लवणकुस । सय-कलाहँ वित्थिन्न-महायस ॥ पत्थतर महिला-कमेण समरारभु महतु पयउ । जिणवि सत्तु लवणकुसेहि बहुयह वइरिहि भग्गु मरद ॥५० तो तहिं भवसरि आइउ नारउ । कुडिय-भिसिय-गणेत्तिय-धारउ ॥ 'अहो नरिंद कि विमण-मण रावचंदहु सुय उप्पन्ना । तेहि वधेविणु मुक्क रणे गमहि काल इहि ठिय पच्छना' ॥५१ नारय-वयणु सुणेवि कुमारेहि । पुच्छ्यि जणणि वत्त गुण-धारेहि ॥ कहइ वत्त लवर्णकुसहँ जाणवि(इ) अइ निरु सोगाऊरिउ(य) । 'तुम्हि पुत्त राहवह फुड कहवि समासिं दुक्खाऊरिय ॥५२ तुम्ह पुत्त सखेविं मक्खउँ । ___ कह राइवहु जलंती पेक्खउ ॥ जेण रुयति मुक्क हउँ [34A] रन्नि सरह-सएल-भयंकरे । आणवि मेल्लिय विहि-वसेण वजजघ-नरनाहहु निय-घरे' ॥५३ जणणिहि वयणु सुणेवि पजलिय मण । ते दबोटु-मिउडि-भीसावण ॥ तहि ] किंकर-अप्फालिय दिन्न पयाण-मैरि तुरती । चाउरग-वल परियरिय सव्व-सेन्न अवझाउरि एती ॥५४ ४८३ दिन, १ उपना ६ कयठमा. ४२ . विनिवि ५ रुवि साह, बनेवी. ५० । वैरिहि ५१६, पच्छ ना ५३ १ रन्नि, सबूल. ५४ ३ अफालिय ६ अवज्मा, एती
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy