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दसरह-नंदणु मणि संतत्तउ ।
मुयइ थाह नयण. मउलंतउ ॥ मुच्छ जाइ सोमित्ति-सुउ उज्जिउ विजिउ चमर-साहि नर [31B] नागरिए नरवरेहि सिह करवि परुन्नउ तेहिं ॥२८
ज वलदेविं मुच्चइ थाह ।
भणइ जणदणु 'ह्य अणाह ॥ विग्गहु करवि स घोरु रणि मारवि लकहि रावणु राणउ | निग्गमणि जणयह तण. मुज्झइ कज्जु सु सव्वु सयाणउ' ॥२९
लोउ भणइ पुणरवि भाया ।
'छञ्जिय सीय अ-कारणि राम' ॥ भवा दोसु न को-वि तउ जिउ भुजइ दुकिय मुकिया। तं निमित्तु पर होइ तउ दोसु पयाणा दिज्जइ का ॥३०
केत्तिउ जणह तणउ मक्खिज्जइ ।
सीयहि रन्ने ज वित्तु कहिग्जइ ॥ मुक्त रुयती कलुण-सर दस वि दिसहु जोएवि परुन्नी । कलण-पलावेहिं जाए पुणु ताय-भाइ-पिय-सयणय-उन्नी ॥३१
'हा हा लक्खण राम सुवष्छल ।
रन्नि रुयत मुक्क पइँ कसु खल ॥ तइय विओउ न पइँ सहिउ जइयहुँ रावणि हरी आसि । एवहि भइ-निठुर-हियउ एकल्ली घल्लिय वण-वासि' ॥३२
विविह-पलाषेहि कदइ जाव।
वजजघु तहि आइउ ताव ॥ पारद्धिं कुजर-कएण भाग-सेण्ण कु-वि सदु सुणिजह । 'का-वि महिल कलुणउँ रुयई' पाइक्केहि नरव[32]हाहे कहिग्नह ॥३३
निहुयउँ सदु सुणवि तिं जाणिय ।
सर-मडल-लक्खणेण वियाणिय ॥ 'एह महिल जा रुयइ वणे सा राहवह पत्ति किउ निच्छउ । दसरह-वंसह कुल-घवल जो जिण-सासणे माण वहिछउ ॥३॥
२८१ वजित २९. २. अणदणु ३१ ५ रने ३२ मि ५ मिटवल १२ बजजघु ३४६ भाषचटिच्छास,