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________________ घरि मच्छतिय रावणहु सा कि व होइ अखडिय-सील' । भइ-वियाउँ भणइ जणु आढत्तिय दुच्चारण-लील ॥७ गहु पवाउ सुणेवि महता | तक्वणि मिलियासेस तुरंता ॥ आलोचइ नरवड-भुवणे पडिहारहु जाणाविउ तेहिं । 'मिलियासेस वि आय वहु ए नागरिय देव तउ गेहि ॥८ गउ पडिहारु राउ जाणाविउ । 'सीह-वारि ण्हु जणवउ आइउ' ॥ 'भरे पडिहार म खलण करि आणि वत्त साहिज्जउ इट्ट' । माणिय तुरय-तुरतेण पहु पणिवाउ करेवि वइद्र ॥९ पाहुडु लेवि भणिय 'किं कन्जु । पउर मिलेविणु आइय अज्जु' ।। भवरुप्परु x x x x जपहि थरहरत कर्पता । 'नगरु विसठुल तुहु तणउँ सीयहि कारणि' भणहि महता ॥१० 'परि घरि राहव एउ वोल्लिज्जइ ।। खडिय-सील सोय आणेजइ ॥ पंसुलि होइ ज का वि तिय वहइ गवु इउँ जणि भल्लारी । सयणहि सा समाणियइ सीयहि वत्त सुणेवि असारी' ॥११ अयस-कलकु ज लोएहि पाडिउ । मोग्गर-घाहि न सिरु ताडिउ ॥ मसणि-दड्डु नै उरि पडिउ सीय-सोउ असहतउ राहउ । पउर-वग्गु घरि पववि मोच्छ जाइ हक्कारइ माहउ ॥१२ तं लक्खणह गुज्छु अक्खिज्जह । वइयरु सीयहि तणउँ कहिज्जह ॥ कर अप्फा[304]लवि धरणियलि मिउडि करेवि अर्णते वुच्चइ । 'को विस-मंजरि खाइ किर अज्जु कयंतो वि जीविं मुच्चई' ॥१३ चक्रपाणि ज वेहाइद्धउ । नाइ घिएण सित्तु धूमिंघउ || ८६ गेहो ९.६ करषि १० २ पवरु ३ प्रति त्रुटित होने से यहां कुछ पाठांश लुम है। १३ ५ किर,
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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