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घर-घर दीपक बरै, लखै नहिं अन्ध है। लखत लखत लखि परै, कटै जम फन्द है ।।
कहन-सुनन कछु नाहिं, नहीं कछु करन है। जीते जी मरि रहै, बहुरि नहिं मरन है।।
जोगी पड़े बियोग, कहैं घर दूर है। पासहि बसत हजूर, तू चढ़त खजूर है।
बाम्हन दिच्छा देता घर घर घालिहै। मूर सजीवन पास, तू पाहन पालिहै ।।
ऐसन साहब कबीर सलोना आप है। नहीं जोग नहीं जाप पुन्न नहीं पाप है।।
आप अपनपौ चीन्हहू, नख-सिख सहित कबीर । आनन्द-मंगल गावहू, होहि अपनपौ थीर ।।
देख वोजूद (वुजूद=सत्ता) में अजब विसराम है, होय मौजूद तो सही पावै ।
आ. वि. सा. अंक
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