________________
तीर्थकर : आठवाँ वर्ष ( मई १९७८ से अप्रैल १९७९ )
लेखानुक्रम
समीक्षा:
अज्ञानी / परिग्रही ज्ञानी / अपरिग्रही, अक्टूबर, पृ. ४ (आवरण) ।
अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ, अक्टूबर, पृ. ३० ।
अदीन वृत्तिवान / संघर्ष सेनानी लक्ष्मीचन्द्र 'सरोज', जून, पृ. ३२ ।
अध्यात्मयोगी सहजानन्द - अन्तिम पृष्ठ : लक्ष्मीचन्द्र जैन, मई, पृ. १६ ।
अपने पर भी हँसे कभी जमनालाल जैन, जनवरी-फरवरी, पृ. ३१ ।
अपने स्वर - अपने गीत : मुनि महेन्द्रकुमार ललवानी, समीक्षा, मई, पृ. ३१ । 'कमल', समीक्षा, मार्च, पृ. २७ ।
प्रो.
अबे, तू आदमी है या जानवर ? : कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर', अक्टूबर, पृ. ५ ।
अर्थमुक्त, । प्रतिष्ठामुक्त पण्डितजी : चारुकीर्ति स्वामी, जून पृ. २४ ।
अहिंसा की भाव-भूमि डॉ. निजामउद्दीन, अक्टूबर, पृ. १४ ।
आँख की पाँख ( कविता ) : भवानीप्रसाद मिश्र, जून, पृ. १८ ।
आँखों ने कहा : मुनि बुद्धमल्ल, समीक्षा, नवम्बरदिसम्बर, पृ, १०१ ।
आओ बनें भेड़ : संपादकीय, सितम्बर, पृ. ३ । आचार बनाम विचार : मो. क. गांधी, समीक्षा,
२७ ।
मार्च, आज कौन तीर्थंकर आया चुपचाप ( कविता ), बाबूलाल जैन 'जलज', अप्रैल, पृ. २ (आवरण) । आत्मकथन : नाथूलाल शास्त्री, जून, पृ. ११ । आत्मा का क्या कुल ? ; आचार्य विद्यासागर, नव. - दिस., पृ. ५२ ।
आदमी हो आदमी की तरह जीना जरा जानो ( कविता ) : नरेन्द्र प्रकाश जैन, जन. फर., पृ.
४३ ।
आवश्यकता : चारित्र-निष्ठा की (पण्डित :: भावी भूमिका) : डॉ.सागरमल जैन, जून, पृ. १३५ इतना तो करें ही संपादकीय, अप्रैल, पृ. ३ | इतना निष्पाप क्यों ? ( बोधकथा ) विनोबा, अगस्त, पृ. २२ ।
उपयुक्त व्यक्ति चन्दनसिंह भरकतिया, जून, पृ. ३४ । सचाई :
'उत्तराध्ययन' : गाथाओं में गुंथी डॉ. नेमीचन्द जैन, सितम्बर, पृ. १७ ।
असली माँ (सत्यकथा) : नेमीचन्द पटोरिया, डॉ. नेमीचन्द जैन, नव. - दिस., पृ. ५३ । मई, पृ. २५ ।
आनन्द का क्षण : कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर', जन. - फर., पृ. ७।
आभ्यन्तर शुद्ध, बाह्य शुद्ध मई, पृ. ४ (आवरण) ।
Jain Education International
उत्तराध्ययन सूत्र (अंग्रेजी ) : अनु. के. सी..
एक और विद्यानन्दि: नीरज जैन, नव- दिस., पू. १७ ।
एक तपः पूत कवि की काव्य-साधना : श्रीमती आशा मलैया, नव. - दिस., पृ. २१ ।
एक तीर्थयात्रा, जिसे भूल पाना असम्भव है :
एक निष्काम, समर्पित व्यक्तित्व : माणकचन्द पाण्ड्या, जून, पृ. ३१ ।
एक बात साफ है : संपादकीय, अक्टूबर, पृ. ३ । कथनी-करनी में एकरूपता: डॉ. हीराबाई बोरदिया, जून, पृ. ३३ ।
कप्पसुत्तं ( कल्पसूत्रम् ) सं. महोपाध्याय विनयसागर, अंग्रेजी अनु. डॉ. मुकुन्द लाठ, समीक्षा, मई, पृ. ३२ ।
कहाँ से कहाँ (बोधकथा ) : नेमीचन्द पटोरिया सितम्बर, पृ. १० ।
कालजयी ( खण्ड काव्य ) : भवानीप्रसाद मिश्र, ममीक्षा, अप्रैल, पू. ४१ ।
क्या आप हँस सकते हैं: संपादकीय, जन. फर.., पृ. ३ ।
क्या भट्टारक पण्डित-पुरखे हैं ? : डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जून, पृ. १०१ ।
हम किसी दुष्काल से गुजरने को हैं ? (पण्डितपरम्परा) : राजकुमारी बेगानी, जून, पृ. ६१ ।
क्या हम किसी दुष्काल से गुजरने को हैं ? (पण्डित - परम्परा) : डॉ. जयकुमार 'जलज', जून, पृ. ६३ ।
किताबें : अनदेखा हिसाब : सुरेश 'सरल', अक्टूबर, नॄ. ह ।
For Personal & Private Use Only
तीर्थंकर : अप्रैल ७९/४९
www.jainelibrary.org