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________________ कहती है-'इस रत्नहार के रत्नों को ऐसे परिवारों में वितरित कर दो जो अर्थाभाव से पीड़ित हैं। लेकिन इन अंकों का रंग-सौंदर्य तभी प्रकट हो सकता है जब 'जयवर्धमान' नाटक को किसी कल्पनाशील निर्देशक का निर्देशन प्राप्त हो । इन्दौर में जहाँ नाट्यगृह, नाट्यसंस्कार, रंगकर्मियों, सहृदय प्रेक्षकों और वर्धमान के अनुयायियों की कमी नहीं है क्या 'जय वर्धमान' नाटक अभिनीत होगा ? 'जय वर्धमान' एक अभिनन्दनीय कृति है। उसका व्यापक मंचन और भी अभिनन्दनीय होगा। 0 डॉ. जयकुमार 'जलज' श्रीमन्नारायण व्यक्ति और विचार : संपा.-यशपाल जैन; सस्ता साहित्य मण्डल, कॅनॉट सर्कस, नई दिल्ली ११०-००१; मूल्य-पच्चीस रुपये, पुष्ठ-४०८; क्राउन१९७९ । प्रस्तुत ग्रन्थ को अभिनन्दन-ग्रन्थ लाहा जाए या स्मृति-ग्रन्थ ? स्व. श्री श्रीमन्नारायणजी की पुनीत स्मृति में उनकी प्रथम पुण्यतिथि (३ जनवरी, १९७९) पर आचार्य श्री विनोबाजी द्वारा विमोचित होने के कारण यह स्मृति-ग्रन्थ होते हुए भी इसमें सामग्री का संयोजन एवं संपादन इस प्रकार किया गया है कि यह ग्रन्थ अभिनन्दन-ग्रन्थ के मगताक्ष-पत्रिकाट कहा जा सकता है। उपराष्ट्रपति श्री वा. दा. जत्ती ने ग्रन्थ की भूमिका में लिखा है कि स्व. श्रीमन्नानारायणजी हमारे देश के उन व्यक्तियों में से थे, जिन्होंने अपने को रचनात्मक प्रवृत्तियों के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने गांधीजी तथा विनोबाजी से प्रेरणा प्राप्त की थी और उनके सिद्धान्तों को आत्मसात् किया था। आचार्य श्री विनोबाजी के शब्दों में नाम उनका श्रीमन्नानारायण था, लेकिन वे दरिद्रनारायण की सेवा में निरन्तर रत रहे। प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई के अनुसार श्रीमन्जी रचनात्मक क्षेत्र के व्यक्ति थे और उनकी दृष्टि समन्वय की रही । प्रस्तुत ग्रन्थ तीन खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में 'व्यक्ति' शीर्षक के अन्तर्गत श्रीमन्नारायणजी से संबन्धित ७४ संस्मरण संकलित हैं। दूसरे खण्ड के ४८ पृष्ठों में 'चरैवेति-चरैवेति' शीर्षकान्तर्गत कविवर श्री भवानीप्रसाद मिश्र ने अपनी रोचक शैली में श्रीमन्जी का संक्षिप्त जीवन-परिचय दिया है। "विचार' नामक तीसरे खण्ड में श्रीमन्जी द्वारा लिखित सामग्री को निबन्ध और लेख, नई-पुरानी यादें, समाजसंरचना के आधार , चिन्तन-मनन, काव्य, पत्रावली के उपशीर्षकों के अन्तर्गत संपादित किया गया है। परिशिष्ट में श्रीमन्नारायणजी के जीवनक्रम, कृति-परिचय, श्रद्धांजलियाँ और अन्तिम यात्रा का विवरण है। ग्रन्थ के मध्य में आर्ट पेपर पर १६ पृष्ठों में श्रीमन्जी से सम्बन्धित चित्र संयोजित किये गये हैं। 'मंडल' की स्वस्थ परम्परा के अनरूप प्रस्तुत ग्रन्थ अपनी विशिष्टता रखता है। हिन्दी में प्रकाशित अभिनन्दन और स्मृति-ग्रन्थों में इसका उल्लेखनीय स्थान रहेगा। गेट-अप, छपाई, कागज आदि की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ उत्तम है। -प्रेमचन्द जैन तीर्थंकर : अप्रैल ७९/४५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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