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________________ 888888888888 HEATRE . 838 48 89806086 आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी के रजत दीक्षा-महोत्सव के उपलक्ष्य में १४ दिसम्बर को राजभवन, बम्बई में आयोजित समारोह में आचार्यश्री राष्ट्रपति श्री रेड्डी को जैनधर्म एवं संस्कृति-विषयक ग्रन्थों को भेंट करते हए । (पृष्ठ ६० का शेष) सर्वांगीण ___ आचार्यश्री का बाल चित्र एक दुर्लभ ___ अपनी अलग पहिचान लिये संपादकीय चित्र है, जो तीर्थंकर' ने पहली बार दिया है। गद्यगीत में साध को विविध आयामों। सर्वांग रूप में विशेषांक अपनी पूर्व परिप्रेक्ष्यों में निहारकर सामयिक परम्परा के निर्वाहन में सफल रहा और परिस्थितियों में भी साध कितनी तीर्थंकर' की छबि, एक श्रेष्ठ मासिक के ऊँची चारित्र की शिला पर बैठकर अपने रूप में सम्प्रदाय के दायरों से विमुक्त होकर एक समय में (आत्मा वर्तमान क्षणों की उभरी है । प्रबुद्ध पाठकों के चिन्तन हेतु यह जीवन्तता) जी सकता है, का मौलिक कुछ नया दे जाता है, जो इसके हरेक अंक चिन्तन, जो मैंने स्वयं आचायश्री के जीवन के लिए पाठक प्रतीक्षित रहता है। से उदभत होते देखा है, पढ़ने को मिला। -निहालचन्द जैन, नौगांव (छतरपुर) आचार्य विद्यासागरजी के कारण सर्वश्रेष्ठ पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री के दिगम्बर जैन विशेषांक बहुत सुन्दर प्रकाशित हुआ साधु के मत में परिवर्तन हुआ है, यह उनकी है। इसमें आपने बहुत परिश्रम किया है। खोजी दृष्टि का द्योतक है। वैसे भारतवर्ष में जितनी जैन पत्र-पत्रिकायें विशेषांक का नवनीत स्वयं आचार्यश्री निकलती हैं, उनमें तीर्थंकर' सबसे उच्च के प्रवचन (टेप) से संकलित उनकी अमृत स्तर का सर्वश्रेष्ठ पत्र है। इसका यथानाम वाणी है, जिन्होंने बड़ी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया तथागुण भी है। से तीन की गिनती में मोक्षमार्ग गिन डाला। -डॉ. ताराचन्द्र जैन बख्शी, जयपुर तीर्थंकर : जन.फर. ७९/६३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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