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इन्दौर डो.एच./६२ म. प्र.
लाइसेन्स नं. एल-६२ नवम्बर-दिसम्बर १९७८ (पहले से डाक-व्यय चुकाये बिना भेजने की स्वीकृति प्राप्त)
प्रश्न भी स्वाध्याय
0 स्वाध्याय शब्द की दो निरुक्तियाँ हैं-स्व+अध्याय और सू।
अध्याय। ममक्ष को नित्य स्वाध्याय करना चाहिये। स्व आत्मा के लिए हितकर शास्त्रों का अध्ययन स्वाध्याय है, तथा 'सु' अर्थात् सम्यक शास्त्रों का अध्ययन स्वाध्याय है।
शब्द की शुद्धता, अर्थ की शुद्धता, बिना विचारे न तो जल्दीजल्दी पढ़ना और न अस्थान में रुक-रुक कर पढ़ना तथा 'आदि' शब्द से पढ़ते हुए अक्षर या पद न छोड़ना सम्यक्त्व या समीचीनता है।
विनय आदि गुणों से युक्त पात्र को शुद्ध ग्रन्थ, शुद्ध उसका अर्थ, और शुद्ध ग्रन्थ तथा अर्थ प्रदान करना वाचना (स्वाध्याय-भेद)
0 ग्रन्थ, अर्थ, और दोनों के विषय में क्या यह ऐसा है या अन्यथा
है' इस सन्देह को दूर करने के लिए अथवा 'यह ऐसा ही है' इस प्रकार से निश्चित को भी दृढ़ करने के लिए प्रश्न करना पच्छना-स्वाध्याय है।
0 प्रश्न अध्ययन की प्रवृत्ति में निमित्त है। प्रश्न से अध्ययन को
बल मिलता है इसलिए वह भी स्वाध्याय है।
0 प्रश्न करना स्वाध्याय का मुख्य अंग है, मगर उस प्रश्न करते
के दो ही उद्देश्य होने चाहिये-अपने सन्देह को दूर करना और अपने जाने हए को दढ करना।
0 जाने हुए या निश्चित हुए अर्थ का मन से जो बार-बार विन्तवन
किया जाता है वह अनुप्रेक्षा है। पठित ग्रन्थ के शुद्धतापूर्वक पुनः पुनः उच्चारण को आम्नाय कहते हैं। आम्नाम भी स्वाध्याय है। श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
(राजस्थान) द्वारा प्रचारित
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