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समाचार : शीर्षक रहित, किन्तु महत्त्वपूर्ण
-'प्राकृत भाषा श्रमण-परम्परा की कर अब वे दक्षिण की ओर मंगल विहार भाषा रही । श्रमण-परम्परा की यह विशे- कर रहे हैं। षता रही कि उसने सर्वजनहिताय सर्वजन
इस अवसर पर दिल्ली जैन समाज की सुखाय सर्वजन की भाषा में ही उपदेश
ओर से मुनिश्री को विनयांजलि प्रस्तुत प्रसारित किये और उसी में साहित्य की
की गयी, जिसमें कहा गया कि उत्तर और रचना की।' ये वे उद्गार हैं जो उपाध्याय
दक्षिण भारत के सभी जैन जैन संस्कृति के श्री विद्यानन्दजी ने श्री कुन्दकुन्द भारती
नाते एक हैं । दक्षिण और उत्तर को मिलाने द्वारा बनाए जा रहे वृषभदेव प्राकृत विद्या
में पूज्य मुनिश्री ने सेतु का काम किया है। पीठ के भवन के शिलान्यास-समारोह में गत ५ नवम्बर को नई दिल्ली में व्यक्त
__-नईदिल्ली से गत १९ नवम्बर को किये। समारोह की अध्यक्षता श्री श्रेयान्स- मंगल विहार के पूर्व आयोजित विशाल सभा प्रसाद जैन ने की और शिलान्यास-विधि __ में एलाचार्य श्री विद्यानन्दजी ने अपने कर्नाटक के धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र हेगडे उद्बोधन में कहा कि यदि प्रतिदिन कुछ ने संपन्न की । समारोह में मुनि और भट्टा
मिनट भी आत्मध्यान में लगाएं, तो रकगण भी उपस्थित थे।
निश्चित ही हमारा जीवन कल्याणमय होगा -उपाध्याय मुनि श्री विद्यानन्दजी को
और दुःखों से छुटकारा मिलेगा । इसी से
समता भाव पैदा होगा । समता भाव ही एलाचार्य के सर्वोच्च पद पर नई दिल्ली में गत १७ नवम्बर को प्रतिष्ठित किया
देश और समाज को एक सूत्र में बाँधने में गया । एलाचार्य पद-प्रतिष्ठा का संपूर्ण
काम देगा। विधान भट्टारक श्री लक्ष्मीसेन, कोल्हापुर एलाचार्य श्री विद्यानन्दजी का दक्षिण ने संपन्न किया । भट्टारक श्री चारुकीर्ति भारत के लिए मंगल विहार १९ नवम्बर ने कहा कि मुनिश्री इस शताब्दी के प्रथम को हो गया है। उनका जयपुर में शुभागमन एलाचार्य हैं । उत्तर में ज्ञान की गंगा बहा २४ दिसम्बर को होगा ।
विद्वानों और अनुसन्धाताओं ने परिचर्चाओं करने के लिए पाँच सदस्यीय समिति की में खल कर भाग लिया।
घोषणा की। शिविर की उपलब्धियों की २७ अगस्त को शिविर का समापन- चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इन सात समारोह वयोवृद्ध विद्वान श्री अगरचन्द दिनों में अनुसन्धानकर्ताओं ने जो किया है नाहटा की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। वह कई महीनों में भी नहीं हो सकता था अध्यक्ष-पद से बोलते हुए उन्होंने शोध-खोज और संपादन एवं अनुसन्धान की जो दष्टि के अपने जीवन-व्यापी अनुभवों की चर्चा उपलब्ध की है, वह वर्षों में भी संभव करते हुए नयी पीढ़ी के विद्वानों और शोध- न थी। कर्ताओं से अनुरोध किया कि वे संपूर्ण मनोयोग से शोध-कार्यों में जुट जाएँ।
वाराणसी की जैन समाज की ओर से शिविर की संस्तुतियों की चर्चा करते
सम्मान के प्रतीक रूप में शिविर में समागत हुए डॉ. गोकुलचन्द्र जैन ने काशी हिन्दू
विद्वानों और संचालकों को श्रीफल तथा विश्वविद्यालय में जैनविद्या के उच्चानु
उत्तरीय भेंट करके स्वागत किया गया। शीलन की संभावनाओं की रूपरेखा तैयार
तीर्थंकर : नव. दिस. ७८
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