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________________ उन्होंने राजा और रंक में भेदभाव न रखते संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का जो कार्य हुए सभी श्रेणियों की जनता में भगवान् किया, वह सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित महावीर के सिद्धांतों का समान रूप रहेगा। से प्रचार किया। मुनिश्री ने समाज में घृणास्पद समझे जानेवाले मोची, चमार, उन्होंने धर्म प्रचार हेतु जिस क्षेत्र को कलाल, खटीक और वेश्याओं तक को अपना चुना, उसे आज की भाषा में पिछड़ा हुआ संदेश सुना कर उनके जीवन को ऊँचा क्षेत्र कहते हैं। भगवान् महावीर ने आज से उठाने की दिशा में भगीरथ प्रयास किया। २५०० वर्ष पूर्व अपनी दिव्य ज्योति द्वारा कितने ही हिंसक कृत्य करनेवाले व्यक्तियों ने उस समय व्याप्त कथित उच्चवर्णीय वर्गों ने आपके उपदेशों से प्रभावित होकर द्वारा समाज में धर्म के नाम पर फैलाये जा आजीवन हिंसा का त्याग किया एवं कई रहे वितण्डावाद एवं हिंसा का मकाबला लोगों ने शराब, मांस, गांजा, भांग तथा निम्न से निम्न अर्थात् अंतिम आदमी की तम्बाकू नहीं सेवन करने की प्रतिज्ञाएँ " झोंपड़ी तक जाकर करने को प्रोत्साहित की । इस प्रकार मुनिश्री ने अपने आपको किया । राज्यवंश में जन्म लेकर जिस धर्मोपदेश एवं जीवदया के महान् कार्य महामानव ने भेद-विज्ञान प्राप्त कर आत्ममें लगा दिया। शक्ति को जागृत किया, स्वयं वीतरागी हुए व विश्व को विनाश से बचाया । जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज का शताब्दी-वर्ष हमारे जीवन का एक सौ वर्ष पूर्व जन्मे मुनिश्री मंगलमय प्रसंग है। हमें चाहिये कि हम चौथमलजी ने आदिवासियों के बीच जाकर उनके आदेशों के अनुरूप मानव-जाति के उनसे माँस व शराब छुड़वाई तथा उन्हें मनुष्य कल्याणकारी दिशा में रचनात्मक कदम बनने की प्रेरणा दी। मनिश्री के समक्ष राजा उठा कर उस महापुरुष के प्रति अपने श्रद्धा एवं रक का कोई भेद नहीं था । वे निस्पृह सुमन समोपत करें। इसी भावना को मन भाव से समान रूप से समताभाव धारण पने किये हुए राजाओं और रंकों को भगवान् वर्ष की स्मृति में जैन दिवाकर विद्या- का " का उपदेश देते थे। सरल, मनोहारी, निकेतन की स्थापना का शुभ संकल्प किया ओजस्वी वाणी जो प्रत्येक व्यक्ति के हृदय गया है। हमें हर्ष है कि श्री स्थानकवासी को छूती थी, उनके उपदेश की शैली हृदयजैन सेवा-संघ ने इस पवित्र कार्य हेतु अपनी स्पर्शी थी । स्वयं त्याग कर दूसरों को प्रेरित न्यू पलासिया भूमि प्रदान कर संस्था के पर ___ कर अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह एवं सचालन का भार-वहन भी स्वयं पर लिया ब्रह्मचर्य व्रत को झोपड़ों तक पहुँचानेवाले है। आशा है समाज के उदार आर्थिक उस महान् तेजस्वी पुण्यात्मा का शताब्दीसहयोग से जैन दिवाकर विया महोत्सव मना कर हम स्वयं अपने कर्तव्यशिक्षा केन्द्र शीघ्र ही मूर्त रूप ग्रहण करेगा। पथ पर चलने को अग्रेषित हो रहे हैं। यही मंगल कामना है। पूज्य मुनिश्री के चरणों में मेरा शत-सुगनमल भंडारी, इन्दौर शत वन्दन ! तेजस्वी पुण्यात्मा -बाबूलाल पाटोदी, इन्दौर परमपूज्य जैन दिवाकर मुनिश्री अहिंसा-धर्म के महान् प्रचारक माहता यमक महान् प्रचारक चौथमलजी महाराज ने सौ वर्ष पूर्व भारत प्रसिद्ध वक्ता जैन दिवाकर स्व. मुनि भूमि में जन्म लेकर भगवान् महावीर के चौथमलजी महाराज श्वे. स्थानकवासी चौ. ज. श. अंक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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