________________
कर्नाटकडल्ली जैनधर्म-ओण्डु अध्ययन चंदेरिया : एक कर्मठ योगी का स्मारक : (कन्नड़) : संपा. डा. टी. जी. कालघटगी, डा. जगदीशचन्द्र जैन, जनवरी-फरवरी, (समीक्षा), मार्च, पृ. ३६
कही जल छूने में · ·, जून, आवरण- जमीन, अगले कदम के लिए : संपादपृ.४
कीय, मई, प. ९ - क्या यह न्यायोचित है ? ('मार्क्सवाद : जय, अन्तिम · · · की : संपादकीय, जैन दृष्टि में' पर प्रतिक्रिया) डा. धन्नालाल अप्रैल, प. ३ जैन, जुलाई, पृ. ३०
___ जय पराजय (उपन्यास) : सुमंगल___कान्फ्लुएन्स ऑफ अपोजिट्स (अंग्रेजी): प्रकाश, (समीक्षा), सितम्बर, पृ. ३४ बैरिस्टर चम्पतराय, (समीक्षा), अगस्त,
जल थोड़ो, नेहा घणू (बोधकथा) : पृ. ४६
भागीरथ कानौड़िया, जुलाई, पृ. १४ । काया : घर योगियों का; दिसम्बर, ज्योतिर्धर जैनाचार्य : पुष्कर मुनि, आवरण-पृ. ४
(समीक्षा), मार्च, पृ. ३६ कुछ अभ्यास का पक्तिया : सठ शकर- जिन्दगी नये सिरे से जानी होगी : लाल कासलीवाल (एस.एस. कासलीवाल): माणकचन्द कटारिया, जनवरी-फरवरी, (समीक्षा), प्रथम खण्ड-अगस्त, पृ. ४३; ।
पृ. ११ द्वितीय खण्ड, दिसम्बर, पृ. ८४
जीव कुली : शरीर कावड़ : कर्म बोझ, कोई ताली लगती (बोधकथा) : आचार्य ।
अगस्त, आवरण-पृ. ४ रजनीश, मार्च, आवरण-पृ. ३
जीवन-प्रेरक उद्धरण, जुलाई, पृ. २३ काँव-काँव; कुहू-कुह (बोधकथा):
___ जैन एकता के संदर्भ में-१ (वीर निर्वाणविक्रमकुमार जैन, जुलाई, पृ. २२
परिचर्चा) : मुनि रूपचन्द्र, दिसम्बर, पृ. ४५ खोल दो अवरुद्ध मन की अर्गलाएँ
__ जैन एकता के संदर्भ में-२ (वीर-निर्वाण(कविता): हजारी लाल जैन सकरार,
परिचर्चा): भान राम 'अग्निमुख', दिसमई, पृ. ५६
म्बर, पृ. ४७ खोज : नये धर्म की : माणकचन्द
जैनेतरों की दृष्टि में : क्या खोजा, कटारिया, अगस्त, पृ. १३
क्या पाया (वीर-निर्वाण-परिचर्चा): खोल के बाहर : एक और जिन्दगी : डा. निजामहीन, दिसम्बर, पृ. ३९ संपादकीय, जनवरी-फरवरी, पृ. ७ घृणा या बदले की भावना नहीं थी ?
जैन कला एवं स्थापत्य खण्ड, १, २, ३ : (मेहमान एक क्षण): सुरेश 'सरल',
- मूल संपा. अमलानन्द घोष, हिन्दी-संपा.
" लक्ष्म चन्द्र जैन, (समीक्षा),दिसम्बर,पृ.७९ अक्टूबर-नवम्बर, पृ. ५ चरम तीर्थंकर श्री महावीर (सचित्र
___ जैन चित्रकला (टिप्पणी): प्रमोदकाव्य) : श्रीमद्विजयविद्याचन्द्रसरिः कुमार, जनवर:-फरवरी, पृ. ४८ (समीक्षा), दिसम्बर, पृ. ३
जैन डायरेक्टर (तमिलनाडु; अंग्रेजी) चैतन्य चिन्तन (बारह भावनाओं पर सपा.-सी. एल. मेहता, (समीक्षा), पृ. ८१ आधारित): जमनालाल जैन, (समीक्षा), जैनधर्म की उदारता : पं. परमेष्ठीदास अप्रैल, पृ. ७०
जैन, (समीक्षा), जून, पृ. ३७ छनी हुई धूप यह (कविता) : विक्रम- जैनिज्म-ए स्टेडी (अंग्रेजी) : संपा. डा. कुमार जैन, जनवरी-फरवरी, पृ. ६ टी.जी. कालघटगी, (समीक्षा), मार्च, पृ. ३५
चौ. ज. श. अंक '
१८९
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org