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जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी : संक्षिप्त जीवन झांकी
जन्म : वि. सं. १९३४, कार्तिक शुक्ला १३, रविवार; नीमच (मध्यप्रदेश )
माता : श्रीमती केसरबाई
पिता : श्री गंगारामजी
वंश : ओसवाल, चोरड़िया
शिक्षा : स्थानीय विद्यालय में हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू
कौमार्य : १६ वर्ष
विवाह : १६ वर्ष की वय में प्रतापगढ़ राजस्थान के श्री पूनमचन्दजी की सुपुत्री मानकुँवरबाई के साथ
दीक्षा : होल्कर रियासत इन्दौर के बोलिया ग्राम में १८ वर्ष की वय में वि. सं. १९५२, फाल्गुन शुक्ला ५, रविवार
दीक्षा गुरु : स्थानकवासी परम्परा के आचार्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज के संप्रबाय सरल स्वभाव कवि मुनि श्री हीरालालजी महाराज द्वारा
अध्ययन : संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, गुजराती, राजस्थानी, मालवी आदि भाषाओं का ज्ञान; बत्तीस जैनागम एवं ग्रन्थ गीता, रामायण, भागवत, कुरान, बाइबल आदि विभिन्न धर्मग्रन्थों का गहन अध्ययन
विहार, धर्मप्रचार : दीक्षा - जीवन के ५५ वर्षों में राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली आदि प्रदेशों के विभिन्न ग्राम-नगरों में विहार, चातुर्मास, भगवान् महावीर के संदेश का जन-जन तक प्रचारप्रसार; उदयपुर, अलवर, किशनगढ़, रतलाम, इन्दौर, देवास, पालनपुर के नरेश-नवाब और छोटे-मोटे अनेक अमीर-उमराव, ठाकुर सामन्त आदि को प्रभावित कर उनकी दुर्व्यसनों से मुक्ति; कई पतित जातियों का उद्धार
चौ ज. श. अंक
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