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महावीर की मंगलमय क्रान्ति : डा. वर्द्धमान महावीर एवं देवशास्त्र-गुरुमहावीर सरन जैन, नवम्बर, पृ. ३३ पूजा : मिश्रीलाल जैन, (समीक्षा), अप्रैल,
महावीर की विरासत : माणकचन्द पृ.४२ कटारिया, अप्रैल, पृ.१५
वर्द्धमान का मुक्ति मार्ग : माणकचन्द ___ महावीर : जीवन और मक्ति के कटारिया, नवम्बर, पृ.१७ सूत्रकार : जयकुमार जलज, फरवरी, प.१९ वर्द्धमान महावीर का स्मरण (संदर्भ ___महावीर-साहित्य (पुस्तकें और पत्र- १९७४; तीन नवगीत) : नईम, नवम्बर, पत्रिकाएँ) १९७४, जनवरी, पृ. १९
वर्षायोग : आत्मिक, सामाजिक और __ महावीर-साहित्य १९७४ (पूति), सांस्कृतिक विकास का प्रयोग : उपाध्याय फरवरी, पृ. ३२
मुनि विद्यानन्द, जुलाई, समाचारमिथ्यात्व : चिन्तन के नये क्षितिज : परिशिष्ट.प.१ डा. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, मई, पृ.२५
वाणी कुष्ठित है : माणकचन्द कटारिया, ___'मक्तिदूत' : अहं-कीलित करुणा-कथा : जनवरी, प.८ जमनालाल जैन, अगस्त, मई, पृ. १९
विवाहपण्णातिसूत्तं (भाग १) : ___ मुर्दे के समान. . . : ऋषि तिरुवल्लुवर
संपा. पं. बेचरदास जोशी, (समीक्षा), की वाणी, मार्च, आवरण पृ.३
नवम्बर, पृ.५३ ___ मोक्ष : सबको क्यों नहीं (बोधकथा) :
वीतरागता : जैसा दुःख, वैसा सुख : नेमीचन्द पटोरिया, दिसम्बर, आवरण
भगवान् महावीर ने कहा था, नवम्बर,
आवरण-पृ.४ _ 'मैं' से महावीर तक (काव्य) : सुरेश वीरायन (महाकाव्य) : रघुवीरशरण 'मरल', (समीक्षा), अगस्त, पृ.३१ 'मित्र', (समीक्षा), दिसम्बर, पृ.३२
मौत मुस्कराती ; नींद टूटने पर : कन्हैया- वैशाली में भूकम्प फिर : वीरेन्द्रकुमार लाल मिश्र 'प्रभाकर', फरवरी, पृ.१० जैन, मार्च, पृ.२८
यज्ञ-पुरुष का अवरोहण ('अनुत्तरयोगी : शास्त्र, शब्द, रूप · ज्ञान नहीं है : तीर्थंकर महावीर' के प्रथम खण्ड का दूसरा भगवान् महावीर ने कहा था, अक्टूबर, अध्याय) : वीरेन्द्रकुमार जैन, जून, पृ.१५ आवरण-पृ.४
यदि अहिंसा कुछ है तो सामाजिक है : शोधन ही प्रतिशोध बन गया (गीत): जैनेन्द्र कुमार, जून, पृ.३
कन्हैयालाल सेठिया, जनवरी, पृ.५ यात्रा : भीतर की ओर (बोधकथा) : श्रमण महावीर : मुनि नथमल, नेमीचन्द पटोरिया, अक्टूबर, पृ.१९ (समीक्षा), जनवरी, पृ.३१ ।
राजस्थान का जैन साहित्य : एक ऐति- श्री गणेशप्रसाद वर्णी स्मृति-ग्रन्थ : हासिक अवलोकन : मुनि महेन्द्रकुमार संपा. डा. पन्नालाल साहित्याचार्य, 'प्रथम', मई, पृ.१८
(समीक्षा), मार्च, पृ.३२ । रेखाएँ ही रेखाएँ हर गलियारे पर सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक (कविता) : जिनेश्वरदास, अक्टूबर, में : मुनि नथमल, (समीक्षा), जनवरी, पृ.१३
पृ.३२ , वर्द्धमान कैसे हम : संपादकीय, अप्रैल, सद्गुण साधु, दुर्गुण असाधु : भगवान्
महावीर ने कहा था, मई, आवरण-पृ.४
चौ. ज. श. अंक
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