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.."एक दीप ईमान का
0 बाबूलाल जैन 'जलज' रहे न नाम-निशान धरा पर, अंधकार अज्ञान का। अगर जला लें, मन-मंदिर में, एक दीप ईमान का।। परम्पराओं के जंगल में, भूल गये अपनी मंजिल । युग के अंधे चौराहों पर, बिखर गये मन के शतदल ।।
माग्य-सितारा चमक उठेगा, नवयुग के निर्माण का।
अगर जला लें, मन-मंदिर में, एक दीप ईमान का ।। भ्रम का कुआ खोदते फिरते, चमत्कार के अभ्यासी। अन्तर्मन का मैल छुड़ाने, फिरते हैं काबा-काशी।। धर्म-कर्म से टूटा मानव, लेता शरण अँधेरे की। परस न पाती दुर्बल आत्मा, स्वर्णिम किरण सबेरे की।
नयी चेतना से भर जाए, कुंठित मन इंसान का।
अगर जला लें, मन-मंदिर में, एक दीप ईमान का। जिस दिन फूटेगा भीतर से, एक गीत सच्चाई का। बन जाएगा कीर्तिमान नव, मानव की ऊँचाई का ।। कठिन प्रश्न हल हो जाएगा, भूख-प्यास-बीमारी का। बीज न बोयेगा जब कोई, छल-प्रपंच-मस्कारी का ।।
हो जाए चिर मिलन अलौकिक, धर्म-कर्म-विज्ञान का।
. अगर जला लें, मन-मंदिर में, एक दीप ईमान का। ज्योति-पर्व हर साल मनाते, बीत गयीं घड़ियाँ । तम-पहाड़ की फटी न छातो, लाखों छोड़ी फुलझड़ियाँ ।। सरल नहीं है तिमिर ठेलना, सुख-सुहाग की बातों से। सिद्ध न होते मंत्र कर्म के, सपनों की सौगातों से ।।
शाश्वत रूप सँवर जाएगा, आत्म-तेज बलिदान का।
अगर जला लें, मन-मंदिर में, एक दीप ईमान का। गौरीशंकर की चोटी हो, चाहे हो खंदक - खाई। रात और दिन झांका करती, आत्मज्योति को परछाई ।। आत्म-दीप की एक किरण ने, जब-जब तम को ललकारा। हुआ सत्य उद्भूत धरा पर, वही ज्ञान-गंगा-धारा ।।
खुल जाता है द्वार स्वयं ही, विश्व-प्रेम कल्याण का। अगर जला लें, मन-मंदिर में, एक दीप ईमान का।
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तोर्यकर : नव. दिस. १९७७
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