________________
ताऊजी और पिताजी दिल्ली के प्रथम नमक-सत्याग्रही थे। दिल्ली में सबसे पहले नमक बनाकर उन्होंने बेचा । महामना मालवीयजी ने स्वयं उनसे नमक खरीदा था।
पिताजी ने ३ साल की 'सो' क्लास बामशक्क्क़त कैद सहर्ष मंजूर की। जेल में वे मूंज बँटते, चक्की चलाते। छह माह पिताजी ने रोटी नमक और पानी से लगाकर खायी। उनके मौन सत्याग्रह पर जेल अधिकारियों का ध्यान गया। अलग से बिना प्याज की सब्ज़ी बनने लगी। जेल में समय का उपयोग अध्ययन में किया। सर इक़बाल की 'बांगेदरा' और 'बालेजबरील' जेल में पढ़ डाली। अल्लामा इक़बाल का 'कलाम-ओ-फ़लसफ़ा', उनकी भाषा, वाणी और ज़िन्दगी का ओढ़नाबिछौना हो गया। मास्टर काबुलसिहजी और क़ौमी श्री गोपालसिंह उनके मौण्टगुमरी और मियाँवाली जेल के ख़ास साथियों में थे। शहीदों के शहीद भगतसिंह की सीट पर पिताजी को १२ घंटे रहने का फ़ा हासिल है।
___कारावास के अनुभवों को पिताजी ने अपनी कहानी की पुस्तकों ‘गहरे पानी पैठ' 'जिन खोजा तिन पाइयां' 'कुछ मोती कुछ सीप' और 'लो कहानी सुनो' (सभी भारतीय ज्ञानपीठ, काशी से प्रकाशित) में पिरोया है । ये अनुभव अब साहित्य की बहुमूल्य थाती हैं।
उनके जेल से छूटने का दिल्लीवासी बहुत बेताबी से इन्तज़ार कर रहे थे। भव्य स्वागत-योजना थी। कारावास पिताजी आत्मशुद्धि के लिए गये थे। जेल से वे चुपचाप घर आ गये। लाला शंकरलाल' और श्री आसफअली घर पर मिलने आये। पिताजी के त्याग एवं देशसेवा की सराहना की । श्री देवदास गांधी ने गाँधी आश्रम में पिताजी को सर्विस देनी चाही; किन्तु उन्होंने देशसेवा का मुआवज़ा स्वीकार नहीं किया।
उनका दिल्ली के क्रान्तिकारियों से बहुत घनिष्ट सम्पर्क था। अपने ओजस्वी विचारों से वे आजीवन कारावास जाने वाले थे । पालियामेन्ट में साइमन कमीशन पर बम फेंका जाएगा, इसकी जानकारी उन्हें बहुत पहले से थी। राजनैतिक शिष्यों में क्रान्तिकारी श्री विमल प्रसाद जैन और श्री रामसिंह प्रमुख हैं।
वे श्री अर्जनलालजी सेठो से बहुत प्रभावित थे। सेठोजी पर उनके लिखे संस्मरण ('जैन जागरण के अग्रदूत' भारतीय ज्ञानपीठ काशी) बहुत सजीव एवं मार्मिक बने हैं। चाचा सुमत
उनका परिचय एवं स्नेह श्री सुमतप्रसादजी जैन से हुआ। उस समय वे सेंट स्टीफेन्स कालेज के होनहार छात्र थे । वे अंग्रेजी-उर्दू कविता के बहुत बड़े प्रशंसक एवं पारखी थे। ग़ालिब और इक़बाल के दीवान उन्हें कण्ठस्थ थे। पिताजी
चौ. ज. श. अंक
१४७
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org