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स्व. अयोध्याप्रसाद गोयलीय के
जन्म-दिन (७ दिस. १९७७) पर विशेष गोयलीयजी : बेटे के आईने में
• आदरणीय ताऊजी और पिताजी दिल्ली में एक साथ गिरफ्तार हुए। दादी ने
अपने दोनों बेटों को जी-भर कर आशीर्वाद दिया और कहा-“मैंने तुम्हें इसीलिए (आज के लिए) जना था” । जनता ने जयजयकार की। मुझे लिफाफे पर रखी दुअन्नी की बात समझ में नहीं आयी। टफ्तर में मैनेजर से बातचीत के दौरान पूछा तो उन्होंने बताया-"मंत्रीजी, व्यक्तिगत डाक में 'ज्ञानपीठ' का पोस्टेज खर्च नहीं करते हैं। दुअन्नी टिकिट के लिए दी है।
0 श्रीकान्त गोयलीय पूर्वज जन्म
पिताजी का जन्म रविवार, ७ दिसम्बर १९०२ को बादशाहपुर (जिला गुड़गाँवा, राज्य हरियाणा) में हुआ था। आपके माता-पिता श्रीमती जावित्रीदेवी और श्रीरामशरणजी थे। खानदानी व्यवसाय बज़ाजे का करते थे। बाबा शास्त्रों के विद्वान् थे। शास्त्र की बारीकियाँ समाज को बताते थे। वे अपनी सरलता, सादगी एवं उच्च विचार के लिए विख्यात थे। जनश्रुति है कि वे दिगम्बरावस्था में जिनदर्शन करते थे। दादी बहुत बहादुर, मेहमान-नवाज़, मधुभाषी और कहानी कहनेगढ़ने में बहुत प्रवीण थीं। पिताजी ने अपने पूर्वजों एवं हमारे बाबा-दादी के गुणों को विरसे में पाकर उन्हें और निखारा।
पिताजी जब ३॥ साल के थे, तभी बाबा का साया उनके सिर से उठ गया था। पुश्तैनी मकान और व्यवसाय को मज़बूरन छोड़कर पिताजी और दादी कोसीकलाँ (मथुरा) आगये। वहाँ पिताजी के मामा-मामी एवं नानी ने उन्हें बहुत स्नेह दिया। पिताजी के मामा लाला भगवन्तलालजी बहुत आन-बान के व्यक्ति थे। वे कोसी के श्रेष्ठ नागरिक थे। अध्ययन
पिताजी की प्रारम्भिक पाठशाला चौरासी (मथुरा) थी। वहाँ आप गुरुजनों एवं विद्यार्थियों के बीच चरित्र के विलक्षण गुणों से सर्वप्रिय बन गये। हस्तलिखित पत्र 'ज्ञानवर्द्धक' के सम्पादक बने । यही पत्र आपके साहित्य रूपी वृक्ष का बीज बना।
चौ.ज. श. अंक
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