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उल्लेख न होकर उन्हें साधुओं में ही मान लिया गया और उनकी बजाय चौथे स्थान पर केवली-प्रणीत-धर्म को शामिल कर लिये जाने से पाथ इस प्रकार हो गया
अरहंता मंगलं। सिद्धा मंगलं। साहू मंगलं ।
केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगरं ॥ इस प्रकार इस महामन्त्र का आदि चौदह अक्षरों का ही ठहरता है ।
यदि यह मान लिया जाए कि यह महामंत्र श्रावकों के जपने का है श्रमण तो श्रावकों को इससे संस्कारित करते हैं। स्व. ज्योतिषाचार्यजी ने भी लिखा है कि तीर्थंकर भगवान् (तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करनेवाले राजा का महापुरुष) भी इसका उच्चारण श्रावक अवस्था में ही विरक्त होते समय करते हैं, तब तो यह चाहे चौदह अक्षरों का रहा हो चाहे पैतीस अक्षरों का हो, कोई अन्तर नहीं पड़ता। हमें तो कृतज्ञ होना चाहिये उस आचार्यों का कि मंत्र का यह संशोधन ऐसा अद्भुत और चमत्कृत करनेवाला हुआ कि यह केवल मन्त्र न रह कर द्वादशांगरूप एवं भाषा-विज्ञान का आधार भी बन गया है, जैसा कि स्व. डॉ. नेमिचंद्रजी, आरा ने अपनी अनूठी, अनुपम और खोजपूर्ण कृति में बड़ी खूबी के साथ सिद्ध किया है। "
(समाज और सिद्धान्त : पृष्ठ १३२ का शेष) स्त्री और शूद्र को वेदज्ञान का अधिकार नहीं है; करार दे दिया गया था। ऊँचनीच की भावना पर उठे इस सिद्धान्त ने समाज-भेद में बहुत बड़ा पार्ट अदा किया और शेष में उसकी अवज्ञा-भावना को समाप्त करना पड़ा। इतना होने पर भी आज तक समाज को उसके कटफल भोगने पड़ते हैं; इसलिए अणुव्रत-संहिता में एक नियम है कि मैं जाति-वर्ण के आधार पर किसी को अस्पृश्य या उच्च-नीच नहीं मानूंगा।
प्राचीन समय की भाँति वर्तमान में भी समाज में कुछ ऐसी मान्यताएँ स्थापित हो रही हैं, जो मनुष्य को उल्टी दिशा में अग्रसर करती हैं। पैसेवाला ही बड़ा योग्य है--यह भ्रान्त धारणा समाज में बड़ी हो गहित और विपरीत भावना फैलाती है। धर्म और सदाचार के लिए तो यह कुठाराघात ही है। जब लोगों की दृष्टि द्रव्य पर टिक जाती है तब वे न्याय, अन्याय कुछ नहीं समझते। वर्तमान की ग़रीबी, भ्रष्टाचार, चोर-बाज़ारी, मिलावट आदि समस्याएँ इसी मिथ्या मान्यता की जड़ से फूटी हैं। इनका समाधान तभी होगा जब यह भ्रान्त धारणा समाप्त होगी। मनुष्य का मूल्य उसके सद्गुण और सद्व्यवहारों पर होगा।
हमारे मनीषी धर्माचार्य युग-युगों से समाज में सही सिद्धान्तों की स्थापना के लिए सत्प्रयत्न करते रहे हैं और कर रहे हैं। सामाजिक क्रान्ति और कल्याण के लिए शोभन सिद्धान्तों की प्रतिष्ठा बहुत ज़रूरी है।
चौ. ज. श. अंक
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