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महामन्त्र णमोकार : कुछ प्रश्न-चिह्न
"प्रश्न यह उठ सकता है कि उच्च पदधारी आचार्य और उपाध्याय अपने से नीचे पदवालों को कैसे नमस्कार करेंगे? इसके अलावा क्या आचार्य, उपाध्याय अथवा साधु स्वयं को भी नमस्कार करेंगे, क्योंकि 'सव्व' में तो वे स्वयं भी आ जाते हैं।
0 प्रतापचन्द्र जैन
णमोकार मन्त्र महान् सुखकारी और शान्ति का ज्ञाता है, जो चारों ही जैन परम्पराओं को समान रूप से मान्य है। इस लोक में यही एकमात्र ऐसा मन्त्र है, जो सर्वव्यापी और सर्वहितंकर है, क्योंकि बगैर किसी भेदभाव के सभी महापुरुष इसमें आते हैं, जिन्होंने राग, द्वेष, काम आदि जीत लिये हैं और जो समूचे जग के ज्ञाता-दृष्टा हैं, भले ही फिर उन्हें बुद्ध, वीर, हरि, हर, ब्रह्मा, ईसा, अल्लाह किसी भी नाम से जाना जाता हो। स्व. डा. नेमिचंद्रजी, आरा ने तो अपनी खोजपूर्ण पुस्तक 'मंगल-मन्त्र णमोकार--एक अनुचिंतन' के आमुख में यहाँ तक लिखा है कि "इसमें समस्त पाप, मल और दुष्कर्मों को भस्म करने की शक्ति है। णमोकार मन्त्र में उच्चरित ध्वनियों से आत्मा में धन और ऋण दोनों प्रकार की विद्युत्-शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनसे कर्म-कलंक भस्म हो जाता है। यही कारण है कि तीर्थंकर भगवान भी विरक्त होते समय सर्वप्रथम इसी महामन्त्र का उच्चारण करते हैं। वैराग्यभाव की वृद्धि के लिए आये देव भी इसीका उच्चारण करते हैं। यह अनादि है। प्रत्येक तीर्थंकर के कल्प-काल में इसका अस्तित्व रहता है।" ।
प्रचलित णमोकार मन्त्र में निम्नलिखित पैंतीस अक्षर हैं और उसमें अरिहन्त से लेकर समस्त साधुओं तक को नमस्कार करने का विधान है :
णमो अरिहंताणं । णमो सिद्धाणं। णमो आइरियाणं। णमो उवज्झामाणं । णमो लोए सव्व साहूणं।
इस अनुचिन्तन में स्व. डॉक्टर साहब ने विद्वत्तापूर्ण शैली में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि "पैंतीस अक्षरोंवाला यह मन्त्र समस्त द्वादशांग जिनवाणी का सार है। इसमें समूचे ऋतुज्ञान की अक्षर-संख्या निहित है। जैन दर्शन के तत्त्व, पदार्थ, द्रव्य, गुण, पर्याय, नयनिक्षेप, आश्रव और बन्ध आदि भी इस मन्त्र में विद्यमान हैं।” स्व. डॉक्टर साहब ने इस मन्त्र को इसी रूप में अनादि बताया है, परन्तु आगे चल कर उन्होंने यह भी लिखा है कि "कुछ विद्वान् इतिहासकारों का अभिमत है कि साधु शब्द का प्रयोग साहित्य में अधिक पुराना नहीं है और ‘साहूणं' पाठ इस बात का द्योतक है कि यह मन्त्र अनादि नहीं है।"
चौ. ज. श. अंक
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