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________________ शुद्ध ज्ञानचेतना का अनुभव करता है वह ( सव्वं ) सम्पूर्ण ( जिण) केवली -प्रणीत ( सासणं ) शासन - स्वसमय और परसमय को ( पस्सदि ) देखता है- जानता है । १. अपदेस - अप्रदेश - निरंश, अवयवरहित । अपएस - अप्रदेश-प्रदेशरहितत्वे अवयवाभावात् निरंशे निरन्वये । अभिधान राजेन्द्र . - जो किसी का न तो प्रदेश है, न अवयव है, न अंश है और न किसी का अन्वय है । प्रत्येक आत्मा असंख्यात प्रदेशी, स्वतन्त्र और अखण्ड यानी अपने आप में पूर्ण है । परसमय वचन ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । गीता, १५/७ २. संत - शान्त - ( प्राकृत तथा पाली में संत का शान्त । दंत का दांत बनता है ) । नव रसों में से एक (प्राकृत, पाली, अपभ्रंश, कन्नड, हिन्दी और मराठी कोश ) । संता - शान्त - रूपा - बोध पाहुड -गा. ५१ संत - शान्त ( Repose) पाली धम्मपद ; ७ ७ संत - शान्त - रस, विशेषण : पाइअसहमहण्णवो, पृ. ८३९ उवसंतो–उपशान्तः; कार्तिकानुप्रेक्षा; गा. ३७७ उवसंतोमि - उपशान्तोऽस्मि प्रतिक्रमण, १२ उपसंतखीणमोहो; पंचास्तिकाय, गा. ७० संत - सज्जन; भगवती आराधना, गा. ६८, पृ. १६३ पसंतप्पा - प्रशान्तात्मा; प्रवचनसार, गा. २७२ जैन शौरसेनी में उपशान्त का उवसंत बन जाता है। -आर. पिशल पैरा ८३ इच्छमि भंते । संति भत्ति । शान्ति भक्ति अंचलिका धम्म तित्थयर संत; प्राकृत जयमाला ।।५।। प्रशान्तात्मने नमः; सिद्धचक्र पाठ । १३६ शुद्धं शिवं शान्तम् ; सामायिक पाठ, अमित गति, २० नमः शान्ताय तेजसे; भर्त हरि, नीति. १।१ शान्तो निःस्पृहनायकः; वाग्भट्टालंकार, ५।३२ शान्तो रसो विजानीयाद्; संगीतसमयसार - ४१६९ जय परम शान्त मुद्रा समेत - हिन्दी संत असंत भरम तुम्ह जानहु -तुलसी, रामायण, ७।१२१ । ३ ३. मज्झं - में मइ मम मह महं मज्झ मज्झं अम्ह अम्हं ङसा ।। ८ । ३ । ११३ ।। अस्मदोङ सा षष्ठयेकवचनेन सहितस्य एते नवाऽऽदेसा भवन्ति । - अभिधान राजेन्द्र कोश, भाग-६, पृ. ६३ 'मज्झं' शब्द प्राकृत भाषा में उत्तम पुरुष सर्वनाम, षष्ठी विभक्ति का एक वचन सम्बन्ध कारक बनता है तथा बहुवचन में 'मज्झाणं' है । (आर. विशल, कम्पेरेटिव ग्रामर ऑफ दि प्राकृत लैंग्वेजेज' पैरा ४१५, मेक्समूलर भवन, न्यू डेल्ही) । ४. 'पस्सदि' - जो पस्सदि - यः कर्त्ता पश्यति जानात्यनुभवति । १२८ Jain Education International - समयसार, ( आत्मग्राहकं दर्शनमिति कथिते । ) –वृ. द्रव्यसं. गा. ४४ तात्पर्य. १।१५ तीर्थंकर : नव. दिस. १९७७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520603
Book TitleTirthankar 1977 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1977
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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