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तुर्फान-तुनहुआंग की राह भारतीय त्रि-चीवरधारी भिक्षु उन भारतीय बस्तियों की ओर जानलेवा राह से चले आ रहे थे, जो रेशमी व्यापार के महापथ पर बस गयी थी और जो उस बौद्ध ऐश्वर्य को भोग-जी रही थीं, जिसका अनेकांश महावीर के चिन्तन से प्रभावित था।
पश्चिमी एशिया साम्राज्यों की सत्ता से संत्रस्त था। सुमेरियों के ध्वंसावशेष पर बाबुली उठे थे, बाबुलियों के भग्न-स्तूपों पर असुरों ने अपने अपूर्व भवनों के स्तंभ खड़े किये थे और तलवार से अपनी कीर्ति लिखी थी। उनका साम्राज्य अब नष्ट हो रहा था और आर्य मीदियों की उठती हुई सत्ता के अब वे शिकार हो रहे थे। उन्होंने असुरों की राजधानी निनेवे को जला डाला था और महावीर के समकालीन ईरानी सम्राट् कुरूष ने मिस्र से आरमीनिया तक और सीरिया से सिन्धु तक की भूमि जीत ली थी, जिसकी साम्राज्य-सीमा अरब में दारा ने सिन्ध नद लांघ राबी तक बढ़ा ली थी। जब महावीर बासठ वर्ष के हुए तभी ५३७ ई. पू. में उधर एक महान् घटना घटी-कुरूष ने बाबुल की सत्ता नष्ट करदी। यह संसारव्यापी प्रभाव उत्पन्न करने वाली घटना थी। कारण कि इसने उन यहूदी नबियों को बन्धन-मुक्त कर दिया, जिन्हें खल्दी सम्राट ने इस्राइल से लाकर कैद में डाल दिया था। बाइबिल की “पुरानी पोथी" की वह घटना भी तभी घटी थी, जिसका उल्लेख हर भाषा का मुहाविरा करता है--सर्वनाश के लिए "दीवार का लेख।" बाबूल का राजा बेल्शज्जार तब जश्न में मस्त था। दावत चल रही थी। नंगी नारियाँ भोजन परस रहीं थीं। किंवदन्ती है एक हाथ निकला और महल की दीवार पर उसने लिख दिया--तुम तोले जा चुके हो, तुम्हारे दिन समाप्त हो चुके हैं, तुम्हारा अन्त निकट हैं। मेने, मेने तेकेल, उफार्सीन। और कुरूष ने तत्काल हमला कर बाबुल को जीत लिया।
बाबल जीत तो लिया गया, पर बाबुल के पुराने जयी असुरों का देवता "असुर" ईरानियों के सिर जादू बनकर जा चढ़ा। उसका उल्लेख महान् देवता के रूप में “आहूर मज्दा" के नाम से जेन्दावेस्ता में हुआ और उसी देवता के प्रधान पूजक महावीर के प्राय: समकालीन पारसियों के नबी जरथ श्थ हुए। अग्नि की पूजा के समर्थक आचार को धर्म में प्रधान स्थान देने वाले इस धार्मिक नेता ने ईरान की सीमाओं को अपने उपदेशों से गुंजा दिया। जरथ श्न का धर्म राजधर्म हो गया। दारा आदि सभी राजाओं ने उसे स्वीकार किया। पर स्वयं उस धर्म के प्रचारक को थर्मार्थ बलि हो जाना पड़ा। अग्निशिखा के सामने मन्दिर में वह पूजा कर रहा था, जब असहिष्णु आतताइयों ने उसमें प्रवेश कर महात्मा का वध कर दिया। भारत इस प्रकार की हत्याओं से धर्म और दर्शन के क्षेत्र में सर्वथा मुक्त था।
___ ग्रीस युद्धों में व्यस्त था, वहाँ के पेरिक्लियन युग का अभी आरम्भ नहीं हुआ था। उसके सुकरात और दियोजिनीज, अफलातून और अरस्तू अभी भविष्य के गर्भ में थे। पर हाँ, पश्चिमी एशिया के भूमध्यसागरीय पूर्वी अंचल में एक ऐसी
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तीर्थंकर : जून १९७५/१६२
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