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पार्श्वनाथ : यात्रा, बर्बरता से मनुजता की ओर
आज से लगभग उन्तीस शताब्दी पहले भारत में एक ऐसी महान् विभूति ने जन्म लिया, जिसने बर्बरता को चुनौती दी और मनुष्य के जीवन में मैत्री, बन्धुत्व, करुणा और क्षमा को प्रतिष्ठित किया। ये थे जैनों के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ, जिनका जीवन सत्यान्वेषण की एक प्रेरक कथा है, और जन्म-जन्मान्तरों में विकसित निबर और क्षमा की अपूर्व शक्तियों का एक विलक्षण इतिहास है। पार्श्वनाथ का समकालीन भारत अन्धविश्वासों, बर्वर रूढ़ियों, हिंसा और क्रूरताओं में जी रहा था, वाराणसी-अंचल कापालिकों और तान्त्रिकों का केन्द्र था। कहीं भी जनता को धोखा देने वाले तथाकथित साधु पंचाग्नि तपते और शरीर को व्यर्थ क्लेश देते दिखायी पड़ते थे। आम आदमी के सामने चुंकि अन्य कोई मार्ग नहीं था अतः वह इसे ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य मानता था और चमत्कारों के आगे नतमस्तक था । पार्श्वनाथ ने. इन सब विषमताओं को चुनौती दी और जीवन के उदात्त मूल्यों की स्थापना की। उन्होंने मानवीय दृष्टि से अपने समकालीन मनुज को समृद्ध किया। उनसे पूर्व के तीर्थकरों में मे नमिनाथ ने अहिंसा और नेमिनाथ ने करुणा की शक्तियों को प्रकट किया था और उनके बाद हुए तीर्थंकर भगवान महावीर ने अपरिग्रह को।
__ पार्श्वनाथ का समकालीन भारत अनाचार और हिंसा से संत्रस्त था। राजनीति, अर्थव्यवस्था, धार्मिक संस्थान, शिक्षा इत्यादि सभी क्षेत्रों में अराजकता और निरंकुशता थी। कोई किसी की सुनता नहीं था, कई मत-मतान्तर और सम्प्रदाय उठ खड़े हुए थे। विशुद्ध आध्यात्मिक साधना की ओर किसी का ध्यान
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/१५५
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