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शब्द-योगी श्रीमद्राजेन्द्रसूरीश्वर शब्द लिखकर काट दिये ? इतना सरल काम शब्दों को पकड़ने और छोड़ने का होता तो हमारा पूरा-का-पूरा देश महापुरुषों का देश होता । निरक्षरों की बहुसंख्या वाले इस देश के हर आदमी को बढ़िया-बढ़िया वचन मुखाग्र हैं। कई-कई बार वह संतवाणी बोल जाता है। रामायण की चौपाइयाँ सुना जाता है । गीता के अध्याय गा लेता है। मेरी नानी भक्तामर व सूत्र का धारा-प्रवाह पाठ कर लेती थी। अच्छे शब्दों का एक छोटा शब्द-कोश उगल जाने का श्रेय हममें से हरेक ले सकता है। वचनों में क्या दरिद्रता ? इसके बावजूद भी निकम्मे शब्द, जाहिल शब्द, मनष्य को तोड़ने वाले शब्द, उसको भ्रम में धोखे में डालने वाले शब्द हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं और इस दलदल में धंसा मनुष्य अपने-अपने धर्म की वाणी को बोलता और सुनता रहता है, धर्म-प्रतिष्ठानों में मारबल में खुदवा-खुदवा कर इन वचनों को सुरक्षित किये हुए है और अपना हर काम वह मंगलाचरण से ही प्रारम्भ करता है।
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/१५
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