________________
वस्तुओं की मिलावट और परिग्रह
आज बहुत से व्यापारी मिलावट का काला धंधा कर तिजोरियाँ नोटों से भर रहे हैं, उन्हें देशवासियों के जीने-मरने से क्या प्रयोजन? बहुत से लोग आवश्यक वस्तुओं का परिग्रह कर, ऊँचे मूल्य पर बेचने के लोभ में अपने ही देशवासियों को कृत्रिम वस्तु-अभाव पैदा कर कष्टों में डाल रहे हैं। मिर्च-मसाला, नमक-आटा, तेलघी कौन-सी ऐसी चीज है जो शुद्ध रूप में प्राप्त होती है। इस स्थिति पर विचार करते हुए मुनिश्री कहते हैं कि “मूल बात यह है कि आज हम अपने देश की चीजों को हेय दृष्टि से देखते हैं। देश में खुशहाली तो तभी होगी जब हम देश को प्यार करेंगे। जो व्यापारी धोखा करते हैं वे देश को कमजोर करते हैं, ऐसे लोगों से देश की ताकत या दौलत नहीं बढ़ेगी।" जिनेन्द्र के अनुयायी ही वस्तुओं का परिग्रह कर अपने धर्म से च्युत हो रहे हैं। महावीर ने अपरिग्रह का उपदेश दिया
और मुहम्मद साहब ने अपने लिए कोई वस्तु दूसरे दिन के लिए उठाकर या बचा कर नहीं रखी। दोनों अपरिग्रही थे। मुनिश्री को खेद है कि आज इन दोनों के नामलेवा उन्हीं के संदेश से पराङमुख हैं। अपने अन्दर का अंधकार
मनिश्री पर्वो के मनाने के पक्ष में तो हैं-चाहे वे राष्ट्रीय पर्व हों या सांस्कृतिक पर्व हों, लेकिन वे चाहते हैं कि इन पर्वो से सम्यक्त्व की उपलब्धि हो-इनसे एसा ज्ञानप्रदीप प्रज्वलित हो जो सभी के हृदय में घिरे अंधकार को नष्ट कर सके'ज्ञानेनपुंसः सकलार्थ सिद्धि'-ज्ञान से सब इच्छाओं की पूर्ति हो सकेगी। दीपावली के विषय में वे कहते हैं कि तीर्थंकर को दीप अर्पित करना भावनाओं के उज्ज्वल प्रतीकों का समर्पण करना है। दीपावली को मात्र दीपों की अवली तक सीमित मत रखो, आत्मा की गहराई में उतार कर देखो। संसार में सारे पाप अंधरे में ही होते हैं, इसीलिए अंधरे को दूर करो, संसार को प्रकाशपुंज से भरो, पाप-मुक्त करो। आज हमारी आजादी भी लाल किले पर तिरंगा फहराने या राष्ट्रपति की सवारी निकालने तक परिसीमित है। यहीं तक आजादी नहीं, देशोन्नति में जुटने और देश को खुशहाल बनाने में ही आजादी है। प्रकृति के अनन्य पुजारी ___मुनिश्री प्रकृति के अनन्य उपासक हैं। प्रकृति के नाना मोहक रूपों में वे भावात्मक एकता के दर्शन करते हैं। "हमारे देशवासी विदेशों की सैर करने को तो बड़ा महत्व देते हैं परन्तु अपने देश के गौरव हिमालय के प्राकृतिक सौंदर्य की ओर ध्यान नहीं देते। उन्हें यहाँ आना चाहिये और यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का
८०
तीर्थंकर | अप्रैल १९७४
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org