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________________ मेरी डायरी के कुछ पन्ने उनकी मधुर ज्ञानालोक-विकीर्ण स्मिति मध्यमा और तर्जनी अंगुलियों के सहारे जो परिभाषाएँ और व्याख्याएँ प्रस्तुत करती है, वे उदात्त जीवनसूत्रों की कारिकाएँ गथा वृत्तियाँ बग जारी हैं। - डा. अम्बाप्रसाद 'सुमन' परम पूज्य एवं श्रद्धेय मुनिश्री विद्यानन्दजी महाराज आज अलीगढ़ में नहीं है। वे २६ जून १९७३ ई. को ही अलीगढ़ से मेरठ-निवास के लक्ष्य को लेकर प्रस्थान कर गये हैं। फिर भी मैं अपनी डायरी में २१ जून से २५ जून, ७३ तक के पन्नों को बार-बार देखता हूँ और पढ़ता हूँ। यद्यपि वे पन्ने देखने में डायरी के शेष पन्नों के ही समान हैं, तथापि मुझे उनमें एक निराली ज्योति दृष्टिगोचर होती है । उन पन्नों के अक्षरों के अंतराल में से जिस दिगम्बर तपोमूर्ति की झाँकी मुझे मिलती है, वह मूर्ति नामालूम क्यों अपनी ओर बार-बार मुझे खींचती है ? मूर्ति की ओर मैं खिंचता हूँ और पन्नों के अक्षरों की ओर मेरी आँखें । मेरी आँखें अक्षरों की पृष्ठभूमि में एक दिव्य काष्ठ-मंच पर आसीन एक ऐसी सदेह आत्मा के दर्शन कर रही हैं, जो सांसरिकता को त्याग कर 'विदेह' बन चुकी है । उस आत्मा के दिव्य प्रकाश से मेरी डायरी के पन्ने और अक्षर ऐसे चमक उठे हैं कि मैं उन्हें बार-बार देखता हूँ और पढ़ता हूँ, किन्तु अतृप्त-सा बना रहता हूँ और फिर तृप्ति के लिए बार-बार पढ़ता हूँ। डायरी में लिखे पन्ने तो और भी हैं; पर वे इतने कान्तिमान् नहीं; क्योंकि उन्हें वैसा प्रकाश प्राप्त नहीं है। 'श्वेताश्वतर' उपनिषद् के ऋषि ने सत्य ही कहा है कि--"तमेव भान्तमनु भाति सर्वं, तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ।” मेरी आँखों की पुतलियों के तिलों में डायरी के केवल पाँच पन्ने हैं; उन पन्नों पर कुछ अक्षर हैं और उन अक्षरों में पंचतत्त्व-निर्मित एक निर्वस्त्र-मझोला हलका-मांसल श्यामल शरीर है। उसके सिर, मुख, छाती और पेट पर कुछ बड़ेछोटे बाल हैं, जो आयु के वार्धक्य को नहीं, अपितु तपश्चर्या के वार्धक्य को प्रकट करते हैं। श्याम पिच्छी और श्वेत कमंडलु ही उसके संगी-साथी हैं। उस मांसल श्यामल शरीर के शरीरी को बैठने की मुद्रा में सुखासन ही प्रिय है। हमारी आँखों को वह शरीरी नग्न लगता है, किन्तु उसे नग्नता का भान ही नहीं है । दिगम्बरत्व' मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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