SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ MEANIN0038888888 युगपुरुष । कल्याणकुमार जैन 'शशि' आज तुम्हारे द्वारा जो पावन गंगा बहती है, वह चारित्रिक गाथा की निर्माण-कथा कहती है। कथनी-करनी में न विरोधाभास कहीं मिलता है, वाणी सुनकर भव्य मनुज का हृदय-कमल खिलता है । जिसके द्वारा आत्मधर्म की होती है पहिचान ! धर्म संत, युगपुरुष, पूज्य मुनि विद्यानन्द महान् ! वातावरण बदल देते हैं, जहाँ पाँव धरते हैं, मख-रूपी रत्नाकर से, नय के निर्झर झरते हैं। चरम लक्ष्य पाने की मन में. जिज्ञासा भरते हैं. आत्म तथा परमात्म रूप का प्रतिपादन करते हैं। इसी क्षपक श्रेणी से चढ़कर भक्त बने भगवान् ! धर्म सन्त, युगपुरुष पूज्य मुनि विद्यानन्द महान् ! फैली हुई भ्रान्तियों को, तुमने सर्वत्र हटाया, मनि-उपदेशों के सुनने का वातावरण बनाया। जैनागम के माध्यम से ही, विश्व-धर्म समझाया, कट्टर अडिग महाधीशों से तुमने आदर पाया। दिया तुम्हारी क्षमताओं ने तुम्हें विशद सम्मान । धर्म सन्त, युगपुरुष, पूज्य मुनि विद्यानन्द महान् । मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy