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________________ एक सन्त एक साहित्यकार एक सूत्रकार शब्द-कोशों में 'सूत्र' शब्द के अनेक अर्थ दिये गये हैं, : सूत, तागा, जनेऊ, नियम, व्यवस्था, रेखा, थोड़े शब्दों में कहा हुआ पद या वचन, जिसमें बहुत और गूढ़ अर्थ हो मुनिश्री हर दृष्टि से एक सफल सूत्रकार हैं। - नरेन्द्रप्रकाश जैन सरल, शान्त एवं सौम्य व्यक्तित्व के धनी पूज्य मनिश्री विद्यानन्दजी महाराज सही अर्थों में एक उत्कृष्ट सन्त हैं । आचार्य समन्तभद्र स्वामी की कसौटी पर वे खरे उतरते हैं । वे निर्विकार, निराकरण और निःसंग हैं । ज्ञान, ध्यान और तपस्या उनकी दिनचर्या है। उनकी मनोहर मुखमुद्रा एवं प्रकृष्ट प्रवचन-कला में चुम्बकीय प्रभाव है। उनकी धर्मसभा या ज्ञान-गोष्ठी में पहले-पहल जो भी गया, उसका एक ही अनुभव रहा-- “यह न जाना था कि उस महफिल में दिल रह जाएगा हम यह समझते थे, चले आयेंगे दमभर देखकर" उनके चेहरे से ज्ञान का तेज टपकता है तथा वाणी से बहता है अध्यात्म-रस का निर्झर । मौन रहकर भी अपनी आँखों से वे बहुत कुछ बोलते-से जान पड़ते हैं । पूज्यपाद स्वामी ने किसी निर्ग्रन्थ सन्त का वर्णन करते हुए लिखा है-“अवाग्विसर्गः वपुषा मोक्षमार्ग निरूपयन्तं”–अर्थात् वचन से बोले बिना शरीरमात्र से मोक्ष-मार्ग का निरूपण कर रहे थे । पूज्य मुनिश्री ऐसे ही अलौकिक सन्त के पर्याय हैं। उनकी संगति में रहकर लगता है, मानो हम भूतबलि, पुष्पदन्त या उमास्वामी-सरीखे किसी चमत्कारी पूर्वाचार्य के पास बैठे हों । न जाने उनमें ऐसा कौन-सा जादू है कि बच्चे और बूढ़े तथा जवान और प्रौढ़ सब उनके पास बैठकर अपने को कृतकृत्य समझने लगते हैं ! ४२ तीर्थकर | अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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