SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युग-दृष्टा मुनि हैं मुनिजी अतीत के उत्तम, शाश्वत, सदा उपयोगी विचारों को छाँट लेते हैं, कुछ जो मैले हो गये हैं, उन्हें झाड़-पोंछते हैं और जो सड़-गल गये हैं, उन्हें हटा देते हैं। • यह है अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ना ताकि वह उज्ज्वल भविष्य का पोषक बन सके, वर्तमान को अस्वस्थ करने वाला न रहे। 0 कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' मनि विद्यानन्दजी को मेरे नगर में आये काफी दिन हो गये थे। जैन समाज में उनके आने से एक मांगलिक त्योहार-सा हो रहा था। जो भी जैन वन्धु कहीं मिलता, उच्छ्वास के साथ उनकी चर्चा करता और अन्त में कहता-“आप नहीं गये उनके दर्शन करने ? उनके प्रवचन में तो हजारों आदमी प्रतिदिन आते हैं।" - इसके बाद भी उनके प्रवचन में जाने की मेरी इच्छा नहीं हुई । मेरा बचपन दयानंद के रूढ़ि-विद्रोही वातावरण में बीता और मेरी जवानी एक नयी सामाजिक क्रान्ति के लिए गांधीजी की छाया में संघर्ष करते पनपी । मैंने अपने जीवन में अनेक रूढ़ियों को तोड़ा और उसके लिए समाज के पुराणपंथी वर्ग के साथ टक्कर ली। इन सब कारणों से धर्म के कर्मकाण्डी रूप में मेरी कभी आस्था नहीं हुई और जैन मुनियों की नग्नता मेरे मन के निकट एक कर्मकाण्डी रूढ़ि-सी ही रही, दिगम्बरत्व की विश्वात्म भावना नहीं बन पायी। एक मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy