SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। उत्तरकालवति ग्रंथकारों ने भी पंप का बहुत आदर के साथ स्मरण किया है। आगे जाकर कवि नागचंद्र ने स्वयं का अभिनव पंप के नाम से उल्लेख किया है इससे भी इसकी महत्ता सहज ही समझ में आती है। कवि पोन्न पंप के बाद पोन्न का नाम सादर उल्लेखनीय है। यह करीब ई. ९५० में हुआ है, इसने दो धार्मिक एवं एक लौकिक काव्य की रचना की है। लौकिक काव्य भुवनैक रामाभ्यदय अनुपलब्ध है, शांतिनाथ पुराण महत्त्वपूर्ण काव्य है, जिनाक्षरमाला स्तोत्र-ग्रंथ है। इसे कवि-चक्रवर्ती, उभयभाषा-चक्रवर्ती आदि उपाधियाँ थीं, उत्तरवर्ती ग्रंथकारों ने इसका भी सादर स्मरण किया है। इसके द्वारा रचित शांतिनाथ पुराण से प्रभावित होकर दान चिंतामणि अतिमब्बे ने उसकी १००० प्रतियों का लिखाकर वितरण किया। कवि रन्न पोन के बाद कविरन्न का क्रम है। यह करीब ९९३ ई. में हुआ सामान्य वैश्य कासार कुल में उत्पन्न होने पर भी उद्दाम पांडित्य को इसने पाया था। अपनी प्रतिभा से अनेक उत्तम संथों की रचना इसने की थी। इसके द्वारा लिखित अजितनाथ पुराण एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। परशुरामचरित, चक्रेश्वर-चरित अनुपलब्ध हैं। यह भी कर्नाटक-साहित्य-गगन का एक गणनीय नक्षत्र है। पंप, रन्न एवं पोन्न कर्नाटक-साहित्य के रत्नत्रय कहलाते हैं। इसी. से इनके महत्त्व का पता लग सकता है। कवि चावूडराय चावंडराय अथवा चामुंडराय राचमल्ल का सेनापति तथा मंत्री था। वीर होते हुए भी कलाप्रिय था। अपनी माता की प्रेरणा से श्रवणबेलगोला के विशालकाय भगवान् बाहुबलि की मूर्ति का निर्माण इसी ने कराया था, यह करीब क्रि. श. ९६१ से ९८ तक था। इसने संस्कृत में चारित्रसार नामक ग्रंथ की रचना की है। उसी प्रकार कन्नड में चतुर्विशति तीर्थंकर चरित्र की रचना की जो चामुंडराय-पुराण के नाम से प्रसिद्ध है। यह गद्य-ग्रंथ है। इसी प्रकार शिवकोटी ने वड्डाराधने नामक गद्य-ग्रंथ की रचना की है, जो उपलब्ध है; चामुंडराय की अन्य भी कृति होगी, परंतु उपलब्ध नहीं है। श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत-चक्रवर्ती से इसने अध्यात्म-बोध प्राप्त किया था। मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक २०७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy