SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बदलते संदर्भो में जैनधर्म की भूमिका - जैनधर्म चूँकि लोकधर्म है, व्यक्ति-विकास को उसमें परिपूर्ण प्रतिष्ठा है; अतः उसके सिद्धान्त आज के बदलते परिवेश में अधिक उपयोगी हो सकते हैं। [] जैनधर्म अब उनका नहीं रहेगा जो परम्परा से उसे ढो रहे हैं; वह उनका होगा जो वर्तमान में उसे जी रहे हैं । - डा. प्रेमसमन जैन प्रत्येक युग कुछ नये परिवर्तनों के साथ उपस्थित होता है। कुछ परम्पराओं को पीछे छोड़ देता है; किन्तु कुछ ऐसा भी शेष रहता है, जो अतीत और वर्तमान को जोड़े रहता है । बौद्धिक मानस इसी जोड़ने वाली कड़ी को पकड़ने और परखने का प्रयत्न करता है । अतः आज के बदलते हुए सन्दर्भो में प्राचीन आस्थाओं, मूल्यों एवं चिन्तन-धाराओं की सार्थकता का अन्वेषण स्वाभाविक है । जैनधर्म मूलतः बदलते हुए सदों का ही धर्म है । वह आज तक किसी सामाजिक कठघरे, राजनैतिक परकोटे तथा वर्ग और भाषागत दायरों में नहीं बँधा । यथार्थ के धरातल पर वह विकसित हुआ है। तथ्यों को स्वीकारना उसकी नियति है, फिर चाहे वे किसी भी युग के हों, किसी भी चेतना द्वारा उनका आत्मसाक्षात्कार किया गया हो। वर्तमान युग जैनधर्म के परिप्रेक्ष्य में बदला नहीं, व्यापक हुआ है । भगवान् ऋषभ देव ने श्रमण-धर्म की उन मूलभूत शिक्षाओं को उजागर किया था जो तात्कालिक जीवन की आवश्यकताएँ थीं। महावीर ने अपने युग के अनुसार इस धर्म को और अधिक व्यापक किया । जीवन-मूल्यों के साथ-साथ जीव-मूल्य की भी बात उन्होंने कही। आचरणगत अहिंसा का विस्तार वैचारिक अहिंसा तक हुआ । व्यक्तिगत उपलब्धि, चाहे वह ज्ञान की हो या वैभव की, अपरिग्रह द्वारा सार्वजनिक की गयी । शास्त्रकारों ने इसे महावीर का गृहत्याग, संसार से विरक्ति आदि कहा; किन्तु वास्तव में महावीर ने एक घर, परिवार, एवं नगर से निकल कर सारे देश को अपना लिया था। उनकी उपलब्धि अब प्राणिमात्र के कल्याण के लिए समर्पित थी। इस प्रकार उन्होंने जैनधर्म को देश और काल की सीमाओं से परे कर दिया, यही कारण है कि वह विगत दो हजार वर्षों के बदलते मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक १९१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy